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एक जल्लाद और कमजोर पिता ने ऐसे मनाया फादर्स डे

Written By आपका अख्तर खान अकेला on रविवार, 19 जून 2011 | 8:41 am

एक जल्लाद और कमजोर पिता ने ऐसे मनाया फादर्स डे

विश्व भर और देश भर में आज फादर्स डे यानी पितृ दिवस मनाया जा रहा है ..यह दिन पिता को उसके कर्तव्यों और पुत्र पुत्रियों को पिता के प्रति उनके मान सम्मान की याद दिलाने के लियें मनाया जाता है ..हजारों हजार करोड़ लोग आज के दिन अपने पिता को इस दिवस पर कुछ न कुछ तोहफा देते हैं ..मुस्कुराहट देते हैं लेकिन राजथान के अलवर जिले के एक रविन्द्र नाम के आदमी ने इस दिवस को खून की होली के रूप में मनाया है ...अलवर निवासी रविन्द्र ने १५ जून को अपनी पत्नी और एक पुत्री की गोली मरकर हत्या कर दी थी और एक मासूम पांच साल की बच्ची को घर से लेकर फरार हो गया था उसे पुलिस की तलाश थी लेकिन कल जब लोग पितृ दवस मनाने की तय्यारी कर रहे थे उसने सवाई माधोपुर में एक ट्रेन के बाथरूम में अपनी बच्ची को गले से लगाया और फिर खुद के और बच्ची के गोली मार ली ..फादर्स डे पर पिता ने पुत्री और खुद को मोत के घाट उतर लिया ..पुलिस और प्रशासन ने तो यह कहकर पल्ला झाड़ लिया के म्र्तक रविन्द्र कर्जे में डूबा हुआ था इसलियें उसने पहले अपनी पत्नी और बढ़ी बच्ची की हत्या की और फिर भागते भागते थकने के बाद खुद ने अपनी मासूम बच्ची को सिने से चिपटा कर एक ही गोली से खुद का और खुद की बच्ची का काम तमाम कर  लिया ,,,यह दर्दनाक कहानी इन दिनों इस समाज में रिश्ते नातों की उपेक्षा के कारण समाज का हिस्सा बन गयी है देश में इस तरह के दिवस जिनमे महिला दिवस ,पितृ दिवस,मात्र दिवस , बालिका दिवस जेसे कई दिवस तो मनाये जाते हैं लेकिन समाज और समाज के कल्याणकारी व्यव्य्स्थाओं से जुड़े लोग सरकार के प्रतिनिधि मंत्री अभाव में जी रहे समाज के लोगों के बारे में कोई सुनवाई कोई योजना का प्रस्ताव नहीं रखते हैं नतीजन ऐसे खतरनाक और दिल हिला देने वाले हादसे सामने आते हैं जिनको सुनकर जिनको देख कर महीनों सालों हमारे और आप जेसे लोगों का मन किसी बात में नहीं लगता है और विचलित रहता है तो आओ हम और आप मिलकर इस बुराई ..इस निराशावाद को खत्म कर आशावाद में बदलने के लीयें आज से ही प्रयास शुरू कर दें ....अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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2 टिप्पणियाँ:

रविकर ने कहा…

हृदय विदारक

Swarajya karun ने कहा…

दिल दहला देने वाली दुर्भाग्यजनक घटना. देश में अब परिवार परामर्श केन्द्रों को सक्रिय करने और उनकी संख्या बढाने की ज़रूरत है. इन केन्द्रों में मनोवैज्ञानिकों, समाज-शास्त्रियों और समाज-सेवियों को शामिल किया जाना चाहिए .गंभीर पारिवारिक विवादों को सुझाने में ये काफी उपयोगी हो सकते है.

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