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अरे भई साधो......: सपेरा बनते फिर सांप के बिल में हाथ डालते बाबा

Written By devendra gautam on बुधवार, 8 जून 2011 | 12:06 pm

बाबा रामदेव की सभा में पुलिस ने जिस बर्बरता का तांडव किया वह हैवानियत का चरम प्रदर्शन था. यूपीए सरकार का अक्षम्य अपराध. लेकिन यह सच है कि एक योग गुरु से आन्दोलनकारी नेता के रूप में अपने व्यक्तित्व के रूपांतरण में बाबा चूक गए. पुलिस के दमन पर उतरने के बाद अपने हजारों समर्थकों को उनके हाल पर छोड़कर उनका आयोजन स्थल से भाग खड़े होना अपरिपक्वता का परिचायक था.

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6 टिप्पणियाँ:

Saleem Khan ने कहा…

यह सच है कि एक योग गुरु से आन्दोलनकारी नेता के रूप में अपने व्यक्तित्व के रूपांतरण में बाबा चूक गए. पुलिस के दमन पर उतरने के बाद अपने हजारों समर्थकों को उनके हाल पर छोड़कर उनका आयोजन स्थल से भाग खड़े होना अपरिपक्वता का परिचायक था.

prerna argal ने कहा…

sach kaha aapne baba ko der ke apne anuyai ko chodker bhaganaa nahi chahiye tha,

Swarajya karun ने कहा…

बाबा रामदेव पलायनवादी नहीं हैं. देश को भ्रष्टाचारियों और काले धन के धंधेबाजों से मुक्ति दिलाने के इस शांतिपूर्ण और अहिंसक संग्राम में सेनापति का ज़िंदा रहना भी बहुत ज़रूरी है. आज़ादी की लड़ाई के दिनों में महान क्रांतिकारी नेताजी सुभाष चन्द्र बोस भी वेश बदल कर देश से बाहर चले गए थे और उन्होंने आज़ाद हिंद फ़ौज बना कर अंग्रेजों का मुकाबला किया था .क्या उनका यह कदम गलत था ?

DR. ANWER JAMAL ने कहा…

@ Swarajya Karun ! बाबा के ग़लत फ़ैसलों ने उनकी सारी इज़्ज़त ही ख़ाक में नहीं मिलाई है बल्कि भ्रष्टाचार के विरूद्ध जो हवा बनी थी उसकी भी हवा निकल गई है। बाबा जैसे लोगों के बस का यह अभियान नहीं है। अब बाबा अपनी ही ख़ैर मना लें। दवाओं की जांच भी अब होगी और देखिए किस दवा में इंसान की खोपड़ी का चूरा मिलता है और किस में गाय का पेशाब ?
पता नहीं दवा के नाम पर लोगों को क्या क्या खिला-पिला रहे थे ?
न शाकाहारियों का ईमान सलामत छोड़ा और न ही मुसलमानों का इन बाबा जी ने। ख़ुद सही नहीं हैं और चले हैं सबसे बड़े भ्रष्टचारियों से लड़ने। जब लड़ने चले हो तो अपना दिल तो मज़बूत कर लो बाबा जी।

shyam gupta ने कहा…

बहुत सही कहा..करुण जी...

सतही ज्ञान व विचार एवं गहन तथ्यों में यही अंतर होता है.....the things are not what they are seen ....

AMBUJA ANAND ने कहा…

जो लोग बाबा राम देव और उनके संत समाज के भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोल पर प्रश्न चिन्ह लगाते हुए कहते है संतो को राजनीति से क्या काम वे शायद इस देश के इतिहास से परचित नही है|वे शायद नही जानते है कि जब जब इस देश में सत्ता ने धर्म और राष्ट्रीय भावना को कुचला है ,जब शासक निरंकुश हो कर अपनी ही हीनता के मौलिक अधिकारों के हनन पर उतारू हुआ है तब तब उस निरंकुश सत्ता को सबसे पहली चुनौती इस देश के संतो,महात्माओ और शिक्षको ने दी है | जब शासन ने हथियार के बल पर जनता को रोदन आरम्भ किया है तब शासन को पहली चुनौती शास्त्र धारण करने वाले संतो सस्त्र धारण कर के दी है दे है | kyo कि संत इस देश के जनता का वास्तविक संरक्षक होता है शास्त्र उसे keval धर्म के marg पर चलने को ही नहीं कहता है वरन अन्यायी शासक को से मुकाबला करने को भी कहता है

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