रामलीला मैदान की घटना ने यह साबित कर दिया कि विदेशी बैंकों में काला धन रखने वाले भारतीय खाताधारी काफी ताक़तवर हैं. वे अब जन आंदोलनों की धार को को बर्दाश्त करने को बिल्कुल तैयार नहीं हैं. उनकी सत्ता पर मज़बूत पकड़ है और वे दमनचक्र की किसी सीमा तक जा सकते हैं. ठीक उसी तरह जैसे पूर्व जमींदारों ने जमींदारी उन्मूलन कानून बनने के बाद भी भूमि सुधार कार्यक्रमों को अमली जामा पहनाने के सरकारी प्रयासों को अभी तक सफल नहीं होने दिया.
अरे भई साधो......: गांधी के असली हत्यारे
Written By devendra gautam on सोमवार, 6 जून 2011 | 12:03 am
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4 टिप्पणियाँ:
bahut satik baat...
siyaasi gundon se nipatanaa aasaan nahi hai .bahut hi saarthak lekh.badhaai sweekaren.
please visit my blog/thanks.
जिन्हें स्वामी रामदेव यादव से बहुत उम्मीदें हैं, मैं उनसे सहमत नहीं हूँ. इनके आंदोलन का बाहरी दायरा या रिमोट किसी और राजनीतिज्ञ के हाथ में है.
अब कांग्रेस को चाहिए कि वह स्वामी रामदेव से बातचीत के लिए प्रणव मुखर्जी जैसे महारथी को झोंक दे इससे शायद बीजेपी का रवैया कुछ नरम पड़ जाए. देश अशांति से बच जाए :))
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Thanks for your valuable comment.