प्रिये!
सुबह सुबह जब बिस्तर से उठता हूँ,
तो लगता है,
मुझे किसे ने जगाया है |
फिर,
नित्यकर्म की बौखलाहट में,
चाय और दूध की खलबलाहट में,
एक अहसासं सा रहता है;
कोइ मेरे साथ साथ रहता है ,
और मैं किसी को खोज रहा हूं ||
और फिर,
मरीजों की बडबड़ाहट में,
गाड़ियों की गडगड़ाहट में ,
तथा पहियों की लड़खडाहट, खडखड़ाहट में ,
एक परछाईं सी है मेरे पास,
और मैं किसी को खोजता हूँ |
पुनः
टेबल -टेनिस की मेज के पीछे,
बेडमिंटन के नेट के नीचे,,
सब और मेरे पीछे पीछे ,
वही अहसास सा रहता है ,
जाने कौन कुछ कहता है,
और मैं फिर कुछ खोजने लगता हूँ |
परन्तु,
जब मैं बिस्तर पर लेटता हूँ,
दिन भर के अहसास को,
सहेज़ता हूँ ; तो-
कमरे की छतों से दीवारों से,
चारों और के खामोश नजारों से,
उभरती है ,
अहसासों के बीच से उतरती है-
एक तस्वीर,,
तुम्हारी तस्वीर |
कभी,
उन्नत ग्रीवा, दर्पित चेहरा,
धनुर्भ्रकुटि, मानिनी सी ;
'क्षमा प्रार्थी हूँ '-मैं कहता हूँ ,
पत्र की देरी के लिए ,
क्योंकि मैं रहता हूँ, सदा-
तस्वीर तेरी लिए , जो -
मैं रविवार को ले आया हूँ |
और कभी,
मुस्कुराकर के किये भ्रूभंग से ,
रूप यौवन से उठी तरंग से,
और लवों के स्फुरण के ढंग से ,
लगता है मैं बेहोश होता जारहा हूँ ;
और कह उठता हूँ-
'शायद मैं शीघ्र आरहा हूँ' || ---प्रेम काव्य से ..
सुबह सुबह जब बिस्तर से उठता हूँ,
तो लगता है,
मुझे किसे ने जगाया है |
फिर,
नित्यकर्म की बौखलाहट में,
चाय और दूध की खलबलाहट में,
एक अहसासं सा रहता है;
कोइ मेरे साथ साथ रहता है ,
और मैं किसी को खोज रहा हूं ||
और फिर,
मरीजों की बडबड़ाहट में,
गाड़ियों की गडगड़ाहट में ,
तथा पहियों की लड़खडाहट, खडखड़ाहट में ,
एक परछाईं सी है मेरे पास,
और मैं किसी को खोजता हूँ |
पुनः
टेबल -टेनिस की मेज के पीछे,
बेडमिंटन के नेट के नीचे,,
सब और मेरे पीछे पीछे ,
वही अहसास सा रहता है ,
जाने कौन कुछ कहता है,
और मैं फिर कुछ खोजने लगता हूँ |
परन्तु,
जब मैं बिस्तर पर लेटता हूँ,
दिन भर के अहसास को,
सहेज़ता हूँ ; तो-
कमरे की छतों से दीवारों से,
चारों और के खामोश नजारों से,
उभरती है ,
अहसासों के बीच से उतरती है-
एक तस्वीर,,
तुम्हारी तस्वीर |
कभी,
उन्नत ग्रीवा, दर्पित चेहरा,
धनुर्भ्रकुटि, मानिनी सी ;
'क्षमा प्रार्थी हूँ '-मैं कहता हूँ ,
पत्र की देरी के लिए ,
क्योंकि मैं रहता हूँ, सदा-
तस्वीर तेरी लिए , जो -
मैं रविवार को ले आया हूँ |
और कभी,
मुस्कुराकर के किये भ्रूभंग से ,
रूप यौवन से उठी तरंग से,
और लवों के स्फुरण के ढंग से ,
लगता है मैं बेहोश होता जारहा हूँ ;
और कह उठता हूँ-
'शायद मैं शीघ्र आरहा हूँ' || ---प्रेम काव्य से ..
3 टिप्पणियाँ:
बौखलाहट खलबलाहट बडबड़ाहट |
गडगड़ाहट लड़खडाहट खडखड़ाहट ||
फडफड़ाहट खनखनाहट कड़कड़ाहट |
चिडचिड़ाहट चरमराहट झनझनाहट ||
सुन्दराहट ||
मुस्कराहट ||
वाह !!!!क्या तान है..क्या तन्तानाहट है...धन्यवाद रविकर जी...
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Thanks for your valuable comment.