जब जब कोई नेता या
भूला –भटका-अधिकारी आता
गाँव गली की सैर वो करने
शहर कभी जब ऊब भागता
अम्मा अपना लिए पुलिंदा
गठरी लिए पहुँचती धम से
देखो साहब ! अब आये हो
क्या करने ?? जब बुधिया मर गयी !
झुग्गी उसकी जली साल से
भूखे कुढ़ कुढ़ के मरती थी
बच्चे नंगे घूम रहे हैं
खेत पे कब्ज़ा "उसने" की है
“पटवारी” भी कल आया था
भरी जेब फिर फुर्र हुआ था
पुलिस -सिपाही थाने वाले
"वहीँ" बैठ पी जाते पानी !!
थोडा खेत बचा भी जिसमे
मेहनत कर -कर वो मरती थी
"नील-गाय " ने सब कुछ खाया
मेड काटते --मारे -कोई
काट- काट- चक-रोड मिलाये
सूखे- हरे –पेड़- जो कुछ थे
होली- में “उसने” कटवाये
प्राइमरी का सूखा नल है
बच्चे- प्यासे गाँव -भटकते
सुन्दर 'सर' जो कल बनवाया
टूटी सीढ़ी -सभी -धंसा है
रात में बिजली भी ना आती
साँप लोटते घर आँगन
अस्पताल की दवा है नकली
कोई डाक्टर- नर्स नहीं है
दो दिन -दर्शन कर के जाते -
कुत्ता - सांप उन्हें ना काटे
कितना - क्या मै गठरी खोलूं ??
या जी भर बोलो - मै- ‘रो’ लूं
अधिकारी बस आँख दिखाता
हाथ जोड़ ले जा फुसलाता
नेता जी भी उठ- कर - जोरे
मधुर वचन मुस्काते बोले !
अम्मा !! अब मै यहीं रहूँगा
इसी क्षेत्र से फिर आऊँगा
अब की सब मिल अगर जिताए !
कभी न ये फिर दर्द सताए !!
जीतूँगा दिल्ली जाऊँगा
प्रश्न सभी मै वहां उठाऊँ !
अगर पा गया “उत्तर” सब का
तो फिर प्रश्न रहे कैसे माँ ????
अब जाओ तुम मडई अपनी !
पानी -टंकी-सडक -गली की
चिंता सब हम को है करनी !!
मुँह बिचका नेता ने देखा
अधिकारी को ‘उल्टा’- ठोंका
इसे रोंक ना सकते - मुरदों
“दरी बिछाए”- बैठे -गुरगों
अगली बार जो बुढ़िया आई
मै तेरी फिर करूँ दवाई !
याद तुझे आएगी नानी
सुबह दिखेगा काला पानी !!!
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
13.06.2011
6 टिप्पणियाँ:
समाज की व्यवस्था पर करारा प्रहार है. नेता पर यदि प्रहार किया है तो वह उसे चबा गया होगा अब तक. इससे अकबर इलाहाबादी की पंक्तियाँ याद हो आईं-
कौम के ग़म में डिनर खाते हैं हुक्काम के साथ
रंज लीडर को बहुत है मगर आराम के साथ
आदरणीय भूषण जी नमस्कार
सत्य कहा आप ने की वह उसे चबा गया होगा निगल कर हजम कर गया होगा अब तक ,ये तो सर्व विदित है ही काश हमारे जन मांस की आँख खुले और वह भी उचित मौके पर इन्हें चबा और निगल जाए
धन्यवाद आप का प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद -सुन्दर पंक्तियाँ आप की
रंज लीडर को बहुत है मगर आराम के साथ
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
अच्छी कहानी ...
डॉ श्याम जी धन्यवाद आप का चलिए कोई कहानी तो अच्छी लगी या आपके शब्दों में अच्छी बनी -जब हम अच्छा देखना चाहते हैं तो अच्छा हो भी जाता है और बुरे की ख्वाहिश बुराई में झोंक देती है दुःख में पड़े रहना वाही सोचना दुःख उपजाता है
शुक्ल भ्रमर५
धन्यवाद ...भ्रमर...ये अच्छाई देखना...बुराई देखना...ज्ञान के स्तर की बातें नहीं हैं अपितु सामान्य व्यवहार के स्तर की बातें हैं...ज्ञान के स्तर पर किसी के अच्छा देखने से बुरी चीज़ अच्छी नहीं हो जायगी...अतः कहावतें बेमानी हैं ...
---आप कथन का अर्थ भी समझे नहीं ...कथन का वास्तविक अर्थ है कि ..यह एक कहानी है...कविता तो बिलकुल भी नहीं...
धन्यवाद ......श्याम...
ज्ञान के स्तर पर किसी के अच्छा देखने से बुरी चीज़ अच्छी नहीं हो जायगी...अतः कहावतें बेमानी हैं ...आप का कथन
ज्ञानी लोग कहते हैं शुभ सोचो अच्छा सोचो शुभ करो शुभ होगा
बुरा सोचोगे बुरा करोगे तो बुरा होगा -
आप ऐसा कर के देखिये अच्छा होगा -
खुद पर आजमाने से डर लगता हो तो समाज में या तो बुरी प्रवित्ति वालों को देखिये-
नशे में धुत्त लोगों को देखिये -बुरा से बुरा होता जाता है-
अपने साथ सब का घर परिवार का भी बुरा होता जाता है -
लकीर के फ़कीर मत बनिए -समाज को समझो और सीखो
कविता और कहानी में पद्य और गद्य में अंतर होता है और सीखिए पढ़िए --सीखने में बुराई नहीं है
शुक्ल भ्रमर ५
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