हवा में उड़ रहा है आशियाना.
परिंदे का नहीं कोई ठिकाना.
हमेशा चूक हो जाती है हमसे
सही लगता नहीं कोई निशाना.
अभी सहरा में लाना है समंदर
अभी पत्थर पे है सब्ज़ा उगाना.
जिसे आंखों ने देखा सच वही है
किसी की बात में बिल्कुल न आना.
किसी को याद रखना सख्त मुश्किल
मगर उससे भी मुश्किल है भुलाना.
निकलना रोज अंधेरी गली से
फिर अपने आप से आंखें चुराना.
न आयेंगे कभी हम दर पे तेरे
हमारे दर पे अब तुम भी न आना.
सभी बन्दूक की जद में खड़े थे
यहां हमला हुआ था कातिलाना.
हमेशा मौत ने रुसवा किया है
मिला है जब भी जीने का बहाना.
----देवेंद्र गौतम
(gazalganga.in)
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