सूरज निकला दिन चढ़ आया
और फिर हम मारे मारे भटकने लगे
विकासशील देश है हमारा
यहाँ सब कुछ न्यारा न्यारा
कोई चाहे लोक पाल
कोई बना दे जोक पाल
हम स्वतंत्र हैं
चुनी हुयी सरकार है हमारी
स्वतंत्र
दुनिया से हमें क्या ---
दुनिया को हमसे क्या ??
मेरी अलग ही दुनिया है
उधर शून्य में सब हैं मेरे
प्यारे बे इन्तहा प्यार करने वाले -
मुझसे लड़ने वाले -
मेरा घर परिवार
एक अनोखा संसार
नहीं यहाँ कोई हमारा परिवार
न हमारी कोई सरकार !!
मुझसे अभी दुनिया से क्या लेना देना मेरी अम्मी है न
-मै तो यूं ही झूला झूलता सोता रहूँगा
-अभी तो हाथ भी नहीं फैलाऊंगा
हमारी सरकार पर हमें पूरा भरोसा है
मेरी माँ जब बच्ची थी
वो भी यही कहती थी
मै भी बड़ा हो रहा हूँ
आँख खोलने को मन नहीं करता
कौन कहता है भुखमरी फैलाती है
गोदामों में अन्न जलाती और सड़ाती है
हमारी सरकार….. ???
शुक्ल भ्रमर ५
१७.६.11
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
4 टिप्पणियाँ:
दुखदायी |
क्यूँ पढाई ?
अगर पढाई भी तो---
क्यूँ चित्रावली दिखाई, मेरे भाई ?
* घट रही है रोटियां घटती रहें---गेहूं को सड़ने दो |
* बँट रही हैं बोटियाँ बटती रहें--लोभी को लड़ने दो |
* गल रही हैं चोटियाँ गलती रहें---आरोही चढ़ने दो |
* मिट रही हैं बेटियां मिटती रहे---बेटे को पढ़ने दो |
* घुट रही है बच्चियां घुटती रहें-- बर्तन को मलने दो ||
* लग रही हैं बंदिशें लगती रहें--- दौलत को बढ़ने दो |
* पिट रही हैं गोटियाँ पिटती रहें---रानी को चलने दो |
* मिट रही हैं हसरतें मिटती रहें--जीवन को मरने दो |
आदरणीय रविकर जी नमस्कार
आप ने तो ये सुन्दर रचना यहाँ पिरोकर इन छवियों में जान डाल दी बेबाक सुन्दर सार्थक कथन
आभार आप का काश ये शब्द हमारी सरकार के कानों में भी कभी पड़े
शुक्ल भ्रमर ५
प्रतापगढ़ अवध
विकासशील देश है हमारा
यहाँ सब कुछ न्यारा न्यारा
कोई चाहे लोक पाल
कोई बना दे जोक पाल
हम स्वतंत्र हैं
चुनी हुयी सरकार है हमारी
स्वतंत्र
इन्ही पंक्तियों से सारा दर्द बयां हो जाता है.
मलहम कौन लगाये, बैद्य भी मर्ज से परेशां है.
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मुझे जूता लेना है !
मनु श्रीवास्तव जी धन्यवाद आप का आप ने इस पीड़ित समूह के दर्द को समझा जो की हमारी सरकार की आँखों में न जाने क्यों नहीं घुस पाता क्या पर्दा पड़ा है -
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Thanks for your valuable comment.