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मृत्यु का सच बच्चो को कैसे समझाएं...

Written By pratibha on शुक्रवार, 10 जून 2011 | 7:27 pm


मृत्यु जीवन का अंतिम सत्य है फिर भी लोग इसे स्वीकारने से कतराते है। क्योंकि हमारे लिए यह स्वीकार करना कि हमारा सबसे प्रिय व्यक्ति हमसे हमेशा के लिए ज़ुदा हो गया बहुत कठिन होता है। प्रौढ़ व्यक्ति तो फिर ऐसी परिस्थितियों में खुद को संभाल लेते हैं, लेकिन एक बच्चे के लिए जिसके सर से उसके मां या बाप का साया सदा के लिए उठ गया हो तो समझाना बहुत कठिन होता है। यहां यह बात बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है कि आप इन परिस्थितियों में बच्चे के साथ कैसा व्यवहार कर रहे है। उस समय बच्चे के साथ जिस तरह का व्यवहार किया जाता है उसका असर उसके पूरे जीवन पर पड़ता है। समझाने का तरीका ऐसा होना चाहिए कि बालमन पर उसका विपरीत प्रभाव न पड़े। इसका यह मतलब यह नहीं है कि आप उससे झूठ बोले, पर इसका यह मतलब भी नहीं है कि उससे सीधे तौर पर कह दिया जाए कि तुम्हारे मां या बाप अब इस दुनिया में नहीं रहे। वे मर गए। या यह कह कर बहलाया जाए कि यह अभी वे सो रहे है, उस समय तो बच्चा बहल जाएगा, पर साथ ही वह उनके जागने का इंतज़ार भी करने लगेगा। और उनके न जगने के लिए आपको दोषी भी ठहरा सकता है।

दूसरा गलती जो लोग आम तौर पर करते हैं कि बच्चे से कहा जाता है कि वह जिसे प्यार करता था उसे भगवान ने ऊपर अपने पास बुला लिया है। कई बार ऐसे बच्चे नास्तिक हो जाते हैं। उनका ईश्वर पर से विश्वास ही उठ जाता है। वे अपने साथ घटी घटना के लिए ईश्वर को दोषी मानने लगते हैं।

आप सीधे तौर बच्चे से मृत्यु के बारे में बात नहीं कर सकते। अगर आप उसे समझाएंगे भी कि मृत्यु क्यों हुई, उसके क्या कारण थे। तो भी उसका बालमन यह सबकुछ समझ नहीं पाएगा, बल्कि संभव है कि वह उलझ जाए।

सबसे बड़ी समस्या तब आती है जब बच्चा अपनी मां को खोता है। मां जो उसके जीवन का केंद्र होती है। उसकी पूरी दुनिया मां के इर्द-गर्द सिमटी होती है इसलिए उसका जाना उसके जीवन को सबसे ज्यादा प्रभावित करता है। पिता तो अक्सर दूसरी शादी करके अपनी नई दुनिया बसा लेते है, पर अकेला बच्चा दुनिया की भीड़ में खो सा जाता है। उस समय यदि कोई उसकी उसी तरह देखभाल करे जैसे मां करती तो स्थितियां संभल सकती हैं। वरना मां का जाना उसके लिए जीवन भर का नासूर बन जाता है।

छोटे बच्चे के साथ तो नहीं, परंतु यदि बच्चा किशोरवय का है तो उसे अपनी भावनाओं को व्यक्त का अवसर दिया जाना चाहिए, यदि वह रोकर अपने मानसिक संताप को कम करना चाहता है तो उसे रोने दीजिए। ऐसी अवस्था में आँसू दवा का काम करते हैं। मैं तो कहूंगी कि आपको उसे रोने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए ताकि उसका दर्द आँसुओं के रूप में बाहर निकल जाए। अगर उस वक्त वह अपने दर्द को व्यक्त नहीं कर सका तो संभव है भविष्य में वह ऐसा कभी न कर पाए और उम्र बढ़ने के साथ किसी मानसिक रोग का शिकार हो जाए।

उससे भी बड़ी बात यह है कि यदि वह बात करना चाहता है। अपनी भावनाएं बाँटना चाहता है तो से रोकिए मत। उसकी बातें सुनिए, बल्कि उसे प्रोत्साहित करिए कि वह अपने मन की बात आपसे कह सके। उन यादों को आपसे बाँट सकें जो जाने वाले व्यक्ति के साथ जुड़ी थी और उसकी बेहद निजी हैं। ऐसा करके आप उसके अंदर एक आत्मविश्वास को जन्म देंगे, जो कि उस समय बहुत जरूरी होता है। आपके इस बर्ताव से उसको इस बात का अहसास होगा कि वह अकेला नहीं है। कोई है जो उसके साथ खड़ा है। उसको समझता है। उसकी भावनाओं को महत्व देता है और वह उसके साथ खुद को बाँट सकता है।

इस तरह के दर्द से उबरने के लिए कोई समय सीमा नहीं निर्धारित की जा सकती। वक्त ही इस तरह के ज़ख्मों को भरता है। बस जरूरी है तो किसी का साथ।

-प्रतिभा वाजपेयी
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