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तुम्हारे बिना......कविता ...डा श्याम गुप्त....

Written By shyam gupta on मंगलवार, 14 जून 2011 | 10:58 pm

प्रिये !
सूरज की महत्ता ,
भादों में धूप का अकाल पडने पर-
सामने आती है |
इसी तरह,
तुम्हारे बिना, आज-
मन का कोना कोना गीला है ;
जैसे बरसात में ,
सूरज के बगैर ,
कपडे गीले रह जाते हैं |

वस्तु की महत्ता का बोध, उसकी-
अनुपस्थिति से बढ़ जाता है |
इसलिए, तुम्हारी अनुपस्थिति में ,
 हर बार-
तुम्हारे आकर्षण का,
एक नया आयाम मिल जाता हैं |

लहरों और कूलों के आपसी सम्बन्ध में,
अणु-कणों के आतंरिक द्वंद्व में,
सर्वत्र- संयोग और वियोग का क्रंदन है |

संयोग और वियोग,
वियोग और संयोग,
सभी में, इसी का स्पंदन है ;
यही जीवन  है ||                -----काव्य दूत से...
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1 टिप्पणियाँ:

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar ने कहा…

लहरों और कूलों के आपसी सम्बन्ध में,
अणु-कणों के आतंरिक द्वंद्व में,
सर्वत्र- संयोग और वियोग का क्रंदन है |
Sanyog ayr viyog...rason ko vyakhyayit karti achchhi kavita....

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