बंधुआ हूँ मै -मुक्त कहाँ हूँ -??
गर्भ में था तो हाथ बंधे थे
जकड़ा था मै जैसे कैदी !
सीखा वही जो माँ करती थी
खांस खांस जो कुढ़ मरती थी
बर्तन धोना झाड़ू पोंछा
बीस -बीस ईंटो का बोझा
धंसा हुआ मै चार किलो का
पेट में -रोटी का ना टुकड़ा
दर्द टीस का नाच घिनौना
पत्थर पर जो चला हथोडा
कहीं खान में कोयले जैसी
गोरी चमड़ी रंग बदलती
धूप में तपता चाँदी सोना
मोती ढुरता आँख का कोना !!
कैसा सपना -इच्छा पूरी ??
उमर भी अपनी सदा अधूरी
अहो भाग्य ! आया जो धरती
सुन्दर कर्म थे माँ की करनी !!
क्या है दूध -व् चाँद खिलौना ?
क्या कपडे - बस नंगे सोना
बाग़ बस-अड्डा रेल स्टेशन
मरू भूमि का सूखा कोना !
नागफनी हैं -कांटे देखा
देख लिया हर जादू टोना !!
दर्जन भर भाई बहना पर
क्रूर निगाहों का उत्पीडन !
चोर सा कोई पुस्तक झाँकू
क-ख-ग सब कृष्ण पहर !!
काली रात का काला साया
बाप नशेड़ी -जग भरमाया !
दो पैसे के लालच भाई
बंधुआ सब ने मुझे बनाया !!
चौदह में ही चौंसठ जी कर
कभी कमाया कभी खिलाया !
कन्यादान भी करना मुझको
चौरासी मानव तन पाया !!
रब्ब खुदा या मालिक है क्या ??
मालिक मेरा होटल वाला
गैरेज वाला -फैक्ट्री वाला
कहीं भिखारी -पैसे वाला !!
दो रोटी संग चाबुक देकर
खाल उधेड़ सभी करवाता !!
मन करता है आग लगा दूं
धर्म शाश्त्र को धता बता दूं
सब झूठे -कानून-जला दूं
जो अंधे हैं देख न पाते
बंधुआ -बंधन होता क्या है ??
बंधुआ हूँ मै कहाँ नहीं हूँ ???
तलवे उनके चाट रहा हूँ
आगे पीछे नाच रहा हूँ
अब भी मेरे हाथ बंधे हैं
नाग पाश में हम जकड़े हैं !!
मूक -सहूँ मै-भाव नहीं हैं
हड्डी है बस -चाम नहीं है
गूंगे बहरे -वो -भी तो हैं
जिह्वा शब्द है- जान नहीं है
आह चीख- पर -कान नहीं है
जेब ठूंसकर -ले जाते वो
लाज नहीं अभिमान नहीं है
जिनका कुछ सम्मान नहीं है !!
बंधुआ हूँ मै मुक्त कहाँ हूँ ???
गर्भ में थे तो हम जकड़े थे
नाग पाश अब भी जकड़े हैं
चौरासी मानव तन पाया
कठपुतली बन बस रह पाया
बंधुआ हूँ मै कहाँ नहीं हूँ ??
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
१५.०६.२०११
6 टिप्पणियाँ:
बंधुआ हूँ मै मुक्त कहाँ हूँ ???
गर्भ में थे तो हम जकड़े थे
नाग पाश अब भी जकड़े हैं
चौरासी मानव तन पाया
कठपुतली बन बस रह पाया
बंधुआ हूँ मै कहाँ नहीं हूँ ??
मानव तन की यही कहानी…………बहुत सुन्दर्।
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति| धन्यवाद|
मैं यही कहूँगा कि अच्छे भाव व मंतव्य होते हुए बी ही भाव भ्रमित हो जाते हैं...
दर्जन भर भाई बहना पर
बाप नशेड़ी -जग भरमाया !-गलती खुद की है ---तो इसमें धर्म शास्त्र क्या करे..
."धर्म शाश्त्र को धता बता दूं..."
--छोटी कविता लिखें व विषय को एकत्र रखकर चलें ..
बंधुआ ही हूँ मैं , मुक्त कहा हूँ
वंदना जी , पतली दी विलेज जी , मनु जी धन्यवाद आप सब का बंधुआ बंधुओं के दर्द को आप समझे हर्ष हुआ काश हमारी सरकार और चाटुकार लोग भी चेतें -
शुक्ल भ्रमर ५
श्याम जी धन्यवाद
गलती तो सभी करते हैं कौन नहीं करता हम या आप ??
जब प्राणी का दिल दिमाग घुटता रहता है
जलता है भूख से आकुल होता है
तो सब धर्म शास्त्र जो हमें उचित सिखाते हैं सब मानने को कहते हैं
उसे भी ताक पर रख देता है -बस यही अर्थ है
विषय देखिये सहयोग दीजिये इस तबके को -आप की शल्य क्रिया / कथन यहाँ जायज नहीं है -छोटी कविता में भाव पूरे नहीं हो रहे थे
गलती खुद की है ---तो इसमें धर्म शास्त्र क्या करे..
."धर्म शाश्त्र को धता बता दूं..."
--छोटी कविता लिखें व विषय को एकत्र रखकर चलें
शुक्ल भ्रमर ५
एक टिप्पणी भेजें
Thanks for your valuable comment.