अब तो मैं भी सत्ता के विरुद्ध कभी कुछ नही बोलूँगा
भ्रष्टाचार और कालेधन पर अपना मुंह नही खोलूँगा
अरे, मुझको भी तो अपनी जान बहुत प्यारी है
सच लिखने की ताकत मेरी, सत्ता के आगे हारी है
तो भला मैं, क्यूँ सच बोल कर अपना शीष कटाऊ
अमानवीय सरकार को भला क्यूँ अपना दुश्मन बनाऊ
जो सत्ता सोये हुए लोगो पर लाठी बरसा सकती है
न्याय की प्यासी जनता को बूँद-बूँद तरसा सकती है
जिसने सत्याग्रह का अर्थ ही कभी ना जाना हो
लोकतंत्र में जनता की पुकार को कभी ना माना हो
जिसे दुनिया ने पूजा सदा, वो उसको ठग बतलाती है
आधी रात को लाठिया बरसा मन ही मन मुस्काती है
वो सत्ता भला कलम की ताकत को क्या जानेगी
भ्रष्टाचार से पीड़ित प्रजा के आंसू क्या पहचानेगी
सत्ता के धर्म-अधर्म को अपनी कलम से नही तोलूँगा
अब तो मैं भी सत्ता के विरुद्ध कभी कुछ नही बोलूँगा
आज चली है लाठिया, कल गोली भी चलवा सकते है
सच लिखने के अपराध में मुझे भी अन्दर करवा सकते है
तानाशाह हो चुकी सरकार अब प्रजातंत्र को भूल रही
भ्रष्टाचार में लिप्त सरकार, सत्ता के मद में झूल रही
सिंहासन का राजा कोई, बागडोर किसी और के हाथ में
खरगोशों का शिकार कर रहे, सिंह-सियार दोनों साथ में
कसाब खा रहा बिरयानी, सत्याग्राही लाठिया है खा रहे
देश में आतंक फ़ैलाने वाले, लादेन जैसे सत्ता को भा रहे
सात समंदर पार, सत्ता के दलालों की भर रही है तिजोरिया
और एक योगगुरु को द्रोही बतलाकर कर रहे वो मुंहजोरिया
अब तो लगता है डर, कहीं ना कर दे मुझको भी बदनाम
मैं क्यूँ पडू इस झंझट में, करूँगा मैं सत्ता को सलाम
सिंहासन के फेंके सिक्कों पर, अब तो मैं भी डोलूँगा
अब तो मैं भी सत्ता के विरुद्ध कभी कुछ नही बोलूँगा
अपनी जेब भरने को, मैं दरबारों की जेबे टटोलूँगा
अपनी कडवा सच की कविताओं में झूठ की मिश्री घोलूँगा
अब तो मैं भी सत्ता के विरुद्ध कभी कुछ नही बोलूँगा
भ्रष्टाचार और कालेधन पर अपना मुंह नही खोलूँगा
भ्रष्टाचार और कालेधन पर अपना मुंह नही खोलूँगा
अरे, मुझको भी तो अपनी जान बहुत प्यारी है
सच लिखने की ताकत मेरी, सत्ता के आगे हारी है
तो भला मैं, क्यूँ सच बोल कर अपना शीष कटाऊ
अमानवीय सरकार को भला क्यूँ अपना दुश्मन बनाऊ
जो सत्ता सोये हुए लोगो पर लाठी बरसा सकती है
न्याय की प्यासी जनता को बूँद-बूँद तरसा सकती है
जिसने सत्याग्रह का अर्थ ही कभी ना जाना हो
लोकतंत्र में जनता की पुकार को कभी ना माना हो
जिसे दुनिया ने पूजा सदा, वो उसको ठग बतलाती है
आधी रात को लाठिया बरसा मन ही मन मुस्काती है
वो सत्ता भला कलम की ताकत को क्या जानेगी
भ्रष्टाचार से पीड़ित प्रजा के आंसू क्या पहचानेगी
सत्ता के धर्म-अधर्म को अपनी कलम से नही तोलूँगा
अब तो मैं भी सत्ता के विरुद्ध कभी कुछ नही बोलूँगा
आज चली है लाठिया, कल गोली भी चलवा सकते है
सच लिखने के अपराध में मुझे भी अन्दर करवा सकते है
तानाशाह हो चुकी सरकार अब प्रजातंत्र को भूल रही
भ्रष्टाचार में लिप्त सरकार, सत्ता के मद में झूल रही
सिंहासन का राजा कोई, बागडोर किसी और के हाथ में
खरगोशों का शिकार कर रहे, सिंह-सियार दोनों साथ में
कसाब खा रहा बिरयानी, सत्याग्राही लाठिया है खा रहे
देश में आतंक फ़ैलाने वाले, लादेन जैसे सत्ता को भा रहे
सात समंदर पार, सत्ता के दलालों की भर रही है तिजोरिया
और एक योगगुरु को द्रोही बतलाकर कर रहे वो मुंहजोरिया
अब तो लगता है डर, कहीं ना कर दे मुझको भी बदनाम
मैं क्यूँ पडू इस झंझट में, करूँगा मैं सत्ता को सलाम
सिंहासन के फेंके सिक्कों पर, अब तो मैं भी डोलूँगा
अब तो मैं भी सत्ता के विरुद्ध कभी कुछ नही बोलूँगा
अपनी जेब भरने को, मैं दरबारों की जेबे टटोलूँगा
अपनी कडवा सच की कविताओं में झूठ की मिश्री घोलूँगा
अब तो मैं भी सत्ता के विरुद्ध कभी कुछ नही बोलूँगा
भ्रष्टाचार और कालेधन पर अपना मुंह नही खोलूँगा
-विभोर गुप्ता (9319308534)
2 टिप्पणियाँ:
एक आम आदमी (जो कभी विशेष भी हो जाता है) की तकलीफ़ आपने बख़ूबी ब्यान कर दी है.
सबक सिखाती सुंदर रचना.
प्रिय मित्रों,
आप सभी का बहुत बहुत आभार.
इस रचना को पोस्ट करने के बद्द मुझे बहुत फ़ोन कॉल और मेसेज आये, जिसके लिए मैं सभी का धन्यवाद करता हूँ. बहुत लोगों ने मुझसे पूछा कि मैं सत्ता के विरुद्ध क्यों नही मुंह खोलूँगा?
मैं आप सभी को बताना चाहता हूँ कि ये सिर्फ मेरी सत्ता के खिलाफ एक प्रतिक्रिया थी, मैं अपना कविधर्म नही छोडूंगा. मैं हमेश सत्य ही लिखूंगा, चाहे वो एक सत्ता के पक्ष में हो या विपक्ष में.
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