मुस्कानों का ताज महल ......
Saturday, February 5, 2011
दोस्तों हाडोती में बूंदी के विख्यात पत्रकार जनाब मदन मदिर जो आपात काल के सिपाही भी रहे हें उन्होंने अपने संघर्ष के दोरान सिर्फ और सिर्फ बुराई के खिलाफ लढना सीखा हे उन्होंने कभी किसी के आगे घुटने नहीं टेके कभी कवि से अपने जीवन की शुरात करने वाले यह सियासी समाजवादी आज बूंदी से प्रकाशित देनिक अंगद के प्रधान सम्पादक और मालिक हें पिछले दिनों इन जनाब की एक नई पुस्तक शब्द यात्रा का दिलचस्प विमोचन हुआ उसमें से केवल एक छोटी सी कविता मेरे ब्लोगर भाइयों की सेवा में पेश हे जिसका शीर्षक उन्होंने मुस्कानों का ताजमहल रखा हे .................................
यूँ तो अंतर की धरती पर
कई महल आशाओं के
सुख सम्पन्न कई मीनारें
विजयोल्लास मयी प्राचीरें
स्नेह प्रीति की कई सुरंगें
सुख सुविधा के अगिन झरोखे
सोने चांदी की दीवारे
स्वाभिमान के लोह स्तम्भ
धेर्य दुर्ग साहसिक कंगूरे
टूट टूट कर
ढह ढह कर
बन गये खंडहर
लेकिन अधरों की जमना पर
मुस्कानों का ताजमहल
अब तक जीवित हे ।
संकलन अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
2 टिप्पणियाँ:
bahut achchhi prastuti.
gr8
एक टिप्पणी भेजें
Thanks for your valuable comment.