महलों को देखिए , मीनारों को देखिए ,
सपनों में मगन-मस्त सितारों को देखिए !
कहते हैं वतन सबका इक प्यारा सा घर है,
आंगन में रोज बनती दीवारों को देखिए !
बूंदों के लिए तरस रही वक्त की नदी ,
लहरों से हुए दूर किनारों को देखिए !
दौलत के दलालों की हर पल यहाँ दहशत ,
इरादे भी खौफनाक , इशारों को देखिए !
गाँवों को मिटा कर वो बनाने लगे शहर ,
कटते हुए जंगल-पहाड़ों को देखिए !
कुर्सियां भी उन्हें झुक -झुक सलाम करे है ,
देखिए अब ऐसे नजारों को देखिए !
कहते हैं लोकतंत्र पर लगता तो नहीं है ,
चुनावों में वोटरों के बाज़ारों को देखिए !
बिकने को खड़े सब हैं हर एक कदम पर ,
दस-बीस नहीं , कई हज़ारों को देखिए !
बन जाए जिंदगी शायद उनकी इबादत में ,
मासूम ख्वाब लिए बेचारों को देखिए !
भगवान के लिए नहीं जयकार कभी इतना ,
मदहोश,मटरगश्त लगे नारों को देखिए !
होना है जो भी ,वह तो होकर ही रहेगा ,
बेबसी में आज कैद बहारों को देखिए !
- स्वराज्य करुण
1 टिप्पणियाँ:
bahut sahi kaha hai aapne.aaj to yahi sthiti hai.bahut vastvik abhivyakti...
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