मैंने सपनों में देखी थी
शरमाजाये वो नील गगन,
रुक जाए चलता श्यामल घन|
थम जाए सुरभित मस्त पवन,
जो दिख जाए उसकी छाया ||
चंचल जैसे गति लहरों की,
गंभीर की जैसे सागर हो |
है कभी छलकती इसे ज्यों,
अधभरी छलकती गागर हो ||
कुछ कहदो तो शरमा जाए ,
कुछ कहदो तो गरमा जाए |
चंचल नयनों में जो कोइ,
आँखे डाले भरमा जाए ||
गजगामिनि चलती है ऐसे,
सावन का मंद समीरण हो |
कुछ कहे तो लगता है जैसे ,
कोकिल कहती सरगम स्वर हो ||
अधखिले कमल लतिका जैसी ,
अधरों की कलियाँ खिली हुईं |
क्या इन्हें चूमलूं , यह कहते,
वह होजाती है छुई-मुई ||
मैं यही सोचता था अब तक,
यह कौन है इतना मान किये |
तुमको देखा , मैंने पाया,
यह तो तुम ही थीं मधुर प्रिये ||
---काव्य दूत से...
8 टिप्पणियाँ:
बहुत भावभीनी रचना।
dil ko chu liya
vikas
vikasgarg23.blogspot.com
भावपूर्ण रचना...
धन्यवाद वन्दना जी...पूनम जी ..
-- विकास जी....बहुत सुन्दर व सटीक चित्र लगाया है अपनी करेंट पोस्ट पर...बधाई ..
बहुत भावमयी प्रस्तुति...
आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
कृपया पधारें
चर्चा मंच
धन्यवाद कैलाश जी व दिलबाग विर्क जी....पोस्ट को चर्चामंच पर सजाने के लिए भी ...
बहुत भावमयी प्रस्तुति...
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Thanks for your valuable comment.