उसकी शिकायत का पिटारा
चार – छह दिनों में
खुल ही जाता
तुम तो बस छोटी से
प्यार करती हो ...
हर समय बस
काम ही काम करती रहती हो
मां मुस्करा के कहती नहीं ..
मैं तुम सबसे
बेहद प्यार करती हूं ..
मां उसकी शिकायतों को
नजरअंदाज कर
सिर पे हांथ रखती स्नेह से
क्या हुआ ...
काम भी तो जरूरी है,
यकीं मानो काम के वक्त भी
मेरी आंखों में तुम्हारी ही
अभिलाषा पूर्ति रहती है
तुम्हारे इस स्नेह से लिपटी मैं
पल- पल तुम्हारे हर विचार को
अपनाती हूं, सोच को
परिपक्व होने के लिए
दुनिया की भीड़ में छोड़ देती हूं
तुम भी मेरी तरह
एक मजबूत स्तंभ बनो
मां के लिये आसान नहीं होता
अपने बच्चे से दूर होना
वो हर बच्चे की पीड़ा में
एक समान दुखी होती है
वह यह भी जानती है किसे
उसकी ज्यादा जरूरत है
तुम्हारी शिकायतें
मुझे बुरी नहीं लगती
मैं तुम्हारा स्नेह
महसूस करती हूं इनमें
और इस बात पे हैरां होती हूं
कि जैसे तुम मुझसे झगड़ती हो
ठीक वैसे ही मैं भी
मां से झगड़ा किया करती हूं ...।
5 टिप्पणियाँ:
yah pitaara kabhi band n ho ...
मां के लिये आसान नहीं होता
अपने बच्चे से दूर होना
वो हर बच्चे की पीड़ा में
एक समान दुखी होती है
प्यारी रचना। मां के स्नेह को दर्शाती आपकी पोस्ट दिल को छू गई।
सुन्दर रचना---
जितने भी पदनाम सात्विक,
उनके पीछे मा होता है।
चाहे धर्मात्मा, महात्मा,
आत्मा हो अथवा परमात्मा॥
कभी नहीं रीती हो पाती,
मां की ममता रूपी गागर।
माँ बेटी के बीच का खुबसूरत सा ताना - बाना ये भी न हो तो भी मज़ा नहीं है |
खुबसूरत रचना |
एक टिप्पणी भेजें
Thanks for your valuable comment.