प्रेमिका और ताऊ जी.....: Saleem Khan
सुबह से ही सुरेश का मन किसी काम में नहीं लग रहा था, उसकी प्रेमिका संगीता का फोन सुबह-सुबह ही आ गया था. वह आज आगरा से आ रही थी और उसे बनारस के लिए जाना था. उसकी ट्रेन लखनऊ में रात २ बजे पहुँचने वाली थी और वह उससे चारबाग स्टेशन पर मिलने वाला था. बस इसी उधेड़ बुन में वह परेशान था कि कैसे रात हो और वो स्टेशन पहुंचे! उसे याद था कि संगीता को उसकी रेड कलर की शर्ट बहुत पसंद थी इसीलिए वह उसी शर्ट को तलाश कर रहा था. उसको परेशान देख माँ ने उससे परेशानी पूछी तो वह कुछ नहीं कहके बात टाल गया. भला वह क्या कहता!
आखिरे कार उसे वह शर्ट मिल ही गयी वह फ़ौरन उसे स्त्री करने लगा और तभी उसकी नज़र शर्ट के बटन पर पड़ी, शर्ट से दो बटन ग़ायब थे ! वह परेशान हो उठा, उसे नहीं मालूम था कि घर में कौन सी चीज़ कहाँ रखी है! वह स्टोर रूम की तरफ़ लपका. किसी तरह उसे बटन और सुई धागा मिल ही गया. इससे पहले उसने कभी सुई क्या उसकी नोक तक नहीं देखी थी क्यूंकि सारा कुछ तो माँ ही कर देती थी! उसने घर में कभी कोई काम किया ही नहीं था.
किसी तरह बटन लग गए लेकिन इसी दौरान उसकी एक उंगली में सुई की नोक लग गयी और उसमें से खून निकलने लगा लेकिन वह खुश था क्यूंकि संगीता से मिलने की खुशी के आगे सुई के घाव की तकलीफ़ कुछ भी नहीं थी.
इस तरह उसकी तैयारी पूरी हो गयी. रात के आठ बज रहे थे और वह बार बार घडी को देख रहा था. आज उसे घड़ी किसी खलनायिका से ज़्यादा बुरी लग रही थी. जैसे तैसे रात के बारह बज गए और वह स्टेशन पहुँच गया! ट्रेन को आने में अभी दो घंटे थे. वह स्टेशन पर ही चहल-क़दमी करने लगा. जब अनाउंसर ने ट्रेन के आने की सुचना दी और वह ख़ुशी से पागल हो उठा...
ट्रेन जैसे ही रुकी वह ट्रेन की तरफ़ भागा और वहाँ उसे संगीता मिल गयी, वह बहुत खुश था और संगीता भी!!! इस छोटी से मुलाक़ात में दोनों ने बहुत कुछ कहा और सुना!! इस तरह से सुरेश की अपनी प्रेमिका से मिलने की कसक पूरी हो गयी...
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"सुरेश बेटा कल तेरे ताऊ जी पहली बार यहाँ लखनऊ आ रहे हैं, सुबह छः बजे की ट्रेन है, तू जाकर उन्हें ले आना" माँ ने कहा.
"क्या माँ, ताऊ जी खुद ही चले आयेंगे! स्टेशन कोई दूर थोड़े ही है !!" सुरेश ने बुरा सा मुहँ बना कर कहा.
"बेटा, ऐसा नहीं कहते, वो पहली बार आ रहे हैं और तू उन्हें बाइक से ले आएगा तो उनके लिए आसानी हो जायेगी," इससे पहले सुरेश कुछ कहता माँ ने अपनी बात कह डाली "और हाँ सुन कल सुबह जल्दी उठजाना कहीं ऐसा न हो कि ताऊ जी को तेरा इंतज़ार करना पड़े"
सुरेश को यह बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा था कि स्टेशन से ताऊ जी को लेकर आना है. लेकिन मरता क्या न करता. अगली सुबह माँ ने उसे उठाया तो वह बड़े बेमन से उठा. माँ पहले से ही पानी लेकर खड़ी थी. उसने उसका वही मुहँ धुला दिया और तैयार होने की ताकीद करके चली गयी.
"माँ मेरे शूज़ कहाँ हैं"
"वहीँ रखे हैं अलमारी के नीचे"
"और मेरे कपड़े, अब मैं क्या कपड़े भी खुद ही ढुंढू! कहाँ हैं माँ...जल्दी से लाओ ना!
"ये ले बेटा और जल्दी से तैयार हो जा..." माँ ने कपड़े देते हुए कहा.
सुरेश अपनी बाईक से स्टेशन जा पहुंचा और पार्किंग में अपनी बाइक पार्क कर दी...:
जैसे ही वह प्लेटफ़ॉर्म पर पहुंचा, उसका मोबाइल बज उठा, फ़ोन घर से था.
"हाँ माँ बोल!"
"बेटा, घर वापस आजा, तेरे ताऊ जी घर पहुँच चुके है"
-सलीम
5 टिप्पणियाँ:
जीवन की दो तस्वीरें सलीम जी आपने पेश की। दोनों तस्वीरें हमारे आसपास की ही लगीं। हम अपने प्यक्तिगत स्वार्थों या इच्छाओं के लिए तो हर कष्ट उठाने को तैयार रहते हैं लेकनि जब परिवार या सामूहिक योगदान का अवसर आता है तो हम कोई न कोई बहाना करने लगते हैं। दोनो परिस्थितियों का अच्छा चित्रण।
सलीम जी समय मिले तो आईए, atulshrivastavaa.blogspot.com
साथ ही एक अनूठी प्रेम कहानी, जो खतों में है ढली,
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कमाल की तस्वीर पेश की है... हमारे लिए मायने किसके लिए हैं, यह महत्वपूर्ण बात है... आलोचना से परे एक महत्वपूर्ण दृश्य !
bhai, ab primika ki tulna dada se karenge, uske aage to log ma-bap hi nahi sara jahan bhool jate hai. achchhi post, badhai.
यथार्थ से मिलवाती खुबसूरत रचना !
इन्सान का जो अपना दिल करे वो उसे ख़ुशी - ख़ुशी पूरा करता है और जिस काम को करने का मन न हो सो दलीलें सामने रख देता है ! सुन्दर रचना !
bilkul aas pass ki saamany ghatna si pratit hui yah kahani par ek gudh arth liye hue
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Thanks for your valuable comment.