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घूंघट में सन्यासी : भारत के इतिहास में पहली बार, बाबा रामदेव जी का अनोखा 'योग'-दान

Written By DR. ANWER JAMAL on मंगलवार, 7 जून 2011 | 2:22 am


ब्रह्माकुमारी मिशन  की बहनें और Dr. Anwer Jamal


इसमें कोई शक नहीं है कि मंदिरों और मज़ारों पर चढ़ावे में जो धन संपत्ति दान दी जाती है उसे वहाँ के ज़्यादातर व्यवस्थापक लोकसेवा में लगाने के बजाय अपनी ऐशो इशरत में ख़र्च करते हैं और यह सरासर धार्मिक भ्रष्टाचार है । इसे दूर करना भी उतना ही ज़रूरी है जितना कि विदेशों में जमा काले धन का राष्ट्रीयकरण करना।
...और यह काम बाबा रामदेव जी  के बस का है नहीं !


नकारा सरकार ने सोते हुवे निहत्थे लोगों पर लाठी चार्ज कर के जो बर्बर कार्यवाही की उसकी जितनी  निंदा की जाया कम ही है | आधी रात को दिल्ली पुलिस बल ने आक्रमण किया और सत्याग्रहियों को मैदान से बाहर निकाल फेंका ! कितने घायल हुए , कुछ गायब , बाबा रामदेव को सलवार - समीज में छुप कर भागना पडा ! वाह रे सरकार ! ये कैसी नकारा सरकार है  ?
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घूंघट में सन्यासी : भारत के इतिहास में पहली बार, बाबा रामदेव जी का अनोखा 'योग'-दान

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16 टिप्पणियाँ:

Dr. Yogendra Pal ने कहा…

तुम क्यूँ इतने घटिया हो? तुमको इंसान कहते भी शर्म आती है

तरुण भारतीय ने कहा…

तुमहरे पेट मे दर्द क्यों हो रहा है ...ये काम इस देश मे स्वामीजी ही करेंगे ,,,,देख लेना ....आप जैसे के सामने अब मैं ज्यादा बोलकर ऊर्जा नही खराब करना चाहता |

shyam gupta ने कहा…

संन्यास का अर्थ भी पता है.....

DR. ANWER JAMAL ने कहा…

@ भाई तरूण जी ! आपको हमसे कोई भी ग़लत आशा है ही क्यों ?
बाबा अपने लोगों को शाँत रखते और गिरफ़्तारी दे देते । थोड़ी देर बाद प्रशासन उन्हें रिहा कर देता लेकिन बाबा अपनी ज़िम्मेदारी को ठीक तरह अदा नहीं कर पाए और महिलाएं आदि पिट गईं ।
यह घटना निंदनीय और शोकनीय है लेकिन सुषमा स्वराज कल दिल्ली में सरे आम स्टेज पर ठुमके लगा रही हैं ।
ऐसे लोगों से आप कभी कुछ नहीं पूछते । आपकी शर्म , ग़ैरत और अक़्ल को आख़िर हो क्या गया ?
जो ख़ुदग़र्ज़ बाबा और बाबावादियों पर ज़ुल्म होने के बाद भी नाच सकते हैं । वे और उनके अनुयायी सच्चाई और ईमान को समझ ही कैसे सकते हैं

धन्यवाद !

DR. ANWER JAMAL ने कहा…

@ डा. श्याम गुप्ता जी ! सन्यास का जो भी अर्थ आप जानते हों । आप बाबा रामदेव जी को उस पर परख कर देखिए ।
डर के मारे औरतों के कपड़े पहनकर औरतों में छिपना तो रानी लक्ष्मीबाई ने भी कभी पसंद न किया और कोई भी नेता ऐसा करेगा भी नहीं ।

RameshGhildiyal"Dhad" ने कहा…

Jamaal bhai ...aap ko ham achha aur shaalin samjhte the par aap bhi utne hi kamine nikle jitne vo jinhone nihatthe aur soye hue logon par katilana hamla kiya...Agar yahi baat kisi aur jagah aur tum jaise gande logon k saath hoti to tum maar - kaat kar chuke hote...rahi baat baba ke vesh badlne ki ...aapapne girebaan me jhaanke...aap to n jaane kitne gande rupon me aate ho...aur aap ke circle me hi pata kiya jaae to aap ki tamaam gandi aur ochhi harkate najar aayengi...

RameshGhildiyal"Dhad" ने कहा…

Aur sun teri maa k thumke to sare raah logon ne dekhe hain un par bhi tippadni kar besharm....

RameshGhildiyal"Dhad" ने कहा…

Pakistaan me tumhaari mahilaaon k saath kitna ganda suluk ho raha hai..us pa aur un karne waale kathmullon par bhi apni bakwaas kar ...tera sir kalam kar denge wo...tabhi unke khauf se tu unke baare me nahi likhta...

shyam gupta ने कहा…

------अब तुम्हें, कांग्रेसियों को, इटली की शह पर देश के गीतों पर ठुमके लगाने पर भी एतराज है....कल देश के गीतों पर और परसों देशभक्ति और देश को भारत या हिन्दुस्तान कहने पर ....कहीं लिमिट है क्या ....

shyam gupta ने कहा…

--परख लिया ...वो सच्चे सन्यासी हैं ....नहीं हैं तो बताओ क्यों....

DR. ANWER JAMAL ने कहा…

बदतमीज़ी किसी मसले का हल नहीं है।
@ आदरणीय रमेश भाई साहब ! आप हमें पहले शरीफ़ आदमी समझते थे और अब आप हमें कमीना कह रहे हैं। आप हमें शरीफ़ आदमी क्यों समझते थे ?
और अब हमने कौन सी आपकी लड़की भगा ली है जो आप हमें कमीना कह रहे हैं ?
गालियां हम भी दे सकते हैं और सच मानिए कि अगर दीं तो आपके होश फ़ाख्ता हो जाएंगे लेकिन नहीं, थोड़ा नज़रअंदाज़ करना ज़रूरी होता है। जब घोड़े को दाग़ा जाता है तो वह बिलबिलाकर हिनहिनाता ही है। सच सुनकर भी ऐसे ही लगता है जैसे किसी ने पिघला हुआ सीसा कानों में उंडेल दिया हो।
आपकी पीड़ा को हम समझ सकते हैं।
अब देखिए हमारी शराफ़त हम यहां घोड़े की जगह गधे की मिसाल भी दे सकते थे लेकिन नहीं क्योंकि हमें अपनी बात कहनी है किसी को ज़लील नहीं करना है।
गुफ़्तगू का सलीक़ा आप हमसे सीखिए जनाब।
बदतमीज़ी किसी मसले का हल नहीं है।
पाकिस्तान के बारे में आप मेरी यह पोस्ट पढ़िए और उसके बाद सोचिए कि आप ख़ामख्वाह पाकिस्तान का नाम लेकर हमारा पारा हाई क्यों करना चाहते हैं ?
हम अपने क्रोध पर संयम रखते हैं। हम किसी के भड़काए से नहीं भड़कते। हम तभी भड़कते हैं जबकि हम भड़कना चाहते हैं। ब्लॉगिंग के शुरूआती दिनों में हमें यह बात हासिल नहीं थी लेकिन बाद में हमने संयम का गुण अपने अंदर विकसित कर लिया। आप भी कर लीजिए।
आपकी स्वस्थ आलोचना का हम स्वागत करते हैं।
इस रचना में कोई ग़लत या झूठ बात लिखी हो तो आप उसे चिन्हित करें। हम क्षमा याचना सहित उसे तुरंत वापस ले लेंगे।

Pakistan is a failed state पाकिस्तान नफ़रत में अंधा हो गया है। उसने 4 बार इन्डिया पर अटैक किया और चारों बार हारा। कश्मीर के मसले को भी मुसलमानों ने ही बिगाड़ा है।

DR. ANWER JAMAL ने कहा…

@ आदरणीय डा. श्याम गुप्ता जी ! शिवकुमार गोयल जी एक लेखक हैं। आज 'अंतर्यात्रा' कॉलम में मैंने उनके एक छोटे से लेख 'साधु और संग्रह' पढ़ा जो कि अमर उजाला दिनाँक 14 मार्च 2011 के अंक में पृष्ठ सं. 12 पर छपा है। उसका एक अंश यहाँ उद्धृत है :
'संसार से वैराग्य होने पर कुछ लोग गृहस्थी त्यागकर साधु -संयासी बन जाते हैं। वे कई बार आधुनिकता की चकाचौंध में फँसकर भगवत भजन और सांसारिक लोगों का मार्गदर्शन करने के बजाए चेले बनाने और भव्य आश्रमों के निर्माण में लग जाते हैं। यह ग़लत है। विरक्त संत उड़िया बाबा कहा करते थे ,'यदि सांसारिक ऐश्वर्य में जीने की लालसा है तो साधु बनने की क्या आवश्यकता थी ? असली साधु-संयासी के लिए तो धर्म ग्रंथों में किसी भी प्रकार के संग्रह वर्जित बताया गया है , तो फिर चेले-चेलियाँ बनाने और आश्रम तैयार करने की आकांक्षा पालना उचित नहीं।'
आज के समय में अब उसे ही बड़ा संत माना जाता है , जिसके आश्रम जहाँ-तहाँ फैले होते हैं। इन कथित संतों के शास्त्र विरुद्ध और मर्यादाहीन जीवन जीने के दुष्परिणाम भी अब सामने आ रहे हैं।'
http://charchashalimanch.blogspot.com/2011/06/shiv-kumar-goyal.html

shyam gupta ने कहा…

----शिवकुमार गोयल कोइ शास्त्र्ग्य नहीं हैं ...उन्होंने जो कहा है सही कहा है..आज के आपके बड़े बड़े साधू-संतों..शंकराचार्यों, रविशंकरों,सांई बाबाओं, इमामों , दरवेशों ने आज तक क्या किया ...कोइ कदम क्यों नहीं उठाया, सरकार को क्यों नहीं चेताया ---ऐसे ही लोगों की बात गोयल जी कर रहे हैं जो सही ही है...... .----गृहस्थी त्यागकर साधू-संत बनना अलग बात है....प्रारम्भ से ही साधू संत होना अलग बात है...ये बातें सामान्य परिस्थितियों के लिए हैं, असामान्य परिस्थितियों में( जैसे आज.. ) साधू-संतों-व्यवसाइयों, विद्वानों, विशेषज्ञों को देश, समाज के कल्याण हित अपना अपना कार्य छोडकर/या संभव है तो रत रहकर समाज हित में लग जाना चाहिए...
---उस भागवत भजन, वैराग्य, साधुत्व का क्या फ़ायदा यदि आप समाज हित में आवाज नहीं उठा सकते....
---संसार छोडकर संन्यास से, संसार में रत रहकर संन्यास, साधुत्व , संतत्व अत्यंत कठिन है ...जो राम-कृष्ण जैसा महान ही कर सकता है ...न कर्म लिप्यते नर:.. संसार छोडकर बैठ जाना संन्यास या साधुत्व या संतत्व नहीं,,,

DR. ANWER JAMAL ने कहा…

श्रीमान डा. श्याम गुप्ता जी ! श्री शिवकुमार गोयल जी ने उड़िया बाबा का कथन उद्धृत किया है। कोई कारण नहीं है कि आप उनके कथन पर विश्वास न करें। शंकराचार्य एक विद्वान ही हुआ करता है और वह सन्यासी भी होता है। वह ख़ूब जानता है कि सन्यास का अर्थ क्या होता है और सन्यासी का कर्तव्य क्या होता है ?
देखिए पुरी के शंकराचार्य जी क्या कह रहे हैं बाबा रामदेव जी के बारे में
पुरी के शंकराचार्य बोले, रामदेव हैं ‘कायर’!नई दिल्ली

shyam gupta ने कहा…

जानना व करने में फर्क होता है....अब तक कुछ किया क्यों नहीं ...अतः वह अज्ञानी ही कहा जायगा....कर्म हीन...

DR. ANWER JAMAL ने कहा…

@ डा. श्याम गुप्ता जी ! अगर आप भारत के शंकराचार्यों और आचार्यों को कर्महीन कह रहे हैं तो आप ख़ुद उनसे भी ज़्यादा कर्महीन हैं क्योंकि कोई क्रांति भारत में आप भी नहीं ला पाए।

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