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जाने क्यों अब कलम मेरी....ड़ा श्याम गुप्त....

Written By shyam gupta on सोमवार, 27 जून 2011 | 1:42 pm

जाने क्यों अब ये कलम मेरी,
चलते चलते रुक जाती है |
तुम होती हो तो लिखने की ,
फुर्सत ही किसे मिल पाती है ||

इस दाल -भात के भावों ने ,
सारी स्याही को सोख लिया |
जब कभी उठाकर कलम चला,
तेरी   बाहों   ने रोक लिया ||

तेरे ना होने  पर  सब कुछ ,
यह  सूना सूना  लगता है |
मन  कैद है  तेरे ख्यालों में,
फिर भला कौन क्या लिखता है ||

तेरी  यादों में    कभी कभी ,
मन बुझा बुझा सा रहता है |
और कभी तुम्हारे ख्वाबों से,
मन महका महका लगता है ||

ख्यालों के इन अम्बारों से,
तेरी  ही  सूरत   ढलती  है  |
मन कैद है  तेरे सवालों में,
फिर कलम कहाँ चल सकती है ||

दूरभाष  ने  प्रिये , तुम्हारी -
स्वर सरिता जब सुनवाई |
ख्वाबों के इन्हीं झरोखों से,
बह आई शीतल पुरवाई ||

तेरे आने के ख्यालों से ,
कुछ चेतनता सी छाई है |
इसलिए उठाकर कलम आज,
लिखने की हिम्मत पाई है ||
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10 टिप्पणियाँ:

Manish Khedawat ने कहा…

bahut sunder !
dil se dad kabul kiziye
_____________________________
...दिल में कसक आज़ भी हैं ||

Manish Khedawat ने कहा…

bahut sunder !
dil se dad kabul kiziye
_____________________________
...दिल में कसक आज़ भी हैं ||

रविकर ने कहा…

तेरी यादों में कभी कभी ,
मन बुझा बुझा सा रहता है |


दर्द क्यूँ कागज पे उतरा ,

गुनाह ये क़ुबूल कर |

कलेजे से छलके न दर्द --

बातें न फिजूल कर --



जब रहते हैं पास

तवज्जो तब नहीं देते

झेलो ये दर्द दिल से --

कागज पर क्यूँ बहा देते ||

Anamikaghatak ने कहा…

bahut achchhi post

shyam gupta ने कहा…

--सुन्दर रविकर जी....

कागद-कलम सजाय कें,
नैनन लियो बसाय |
पिय जब दूजौ दर्द दे,
राखूं जिय सहराय ||

shyam gupta ने कहा…

धन्यवाद अना जी...व मनीष जी...कबूल कबूल कबूल ...

Asha Lata Saxena ने कहा…

"जाने क्यों यह कलम लिखते लिखते रुक जाती है "
सुंदर सत्य समेटे हुए कविता |अक्सर बीवी के आगे किसी की नहीं चल पाती फिर कलम क्या चीज है |
आशा

Pallavi saxena ने कहा…

तेरी यादों में कभी कभी ,
मन बुझा बुझा सा रहता है |
और कभी तुम्हारे ख्वाबों से,
मन महका महका लगता है ||

बहुत खूब दिल को छू लेने वाले विचार हैं ,आप के क्यूंकि हर किसी की ज़िंदगी में अक्सर यह पल जरूर आते हैं। जब कोई किसी की यादों में, सोच में इतना ज्यादा खोया होता है, कि कभी गम को याद करके मन बुझा-बुझा सा लगता है। तो कभी खुशी के पलों को याद कर के यादें भी महक उठती है। .....बहुत अच्छे... लिखते रहिए शुभकामनायें

shyam gupta ने कहा…

धन्यवाद पल्लवी जी....

रविकर ने कहा…

धन्यवाद

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