कोंन कहता है की इंसान...
इंसान से प्यार नहीं करता |
प्यार तो बहुत करता है
पर इज़हार नहीं करता |
हर एक... को तो अपने
पहलु से बांधे फिरता है |
पर फिर भी उसे कहने से
हर दम ही वो डरता है |
यूँ कहो की पुराने को हरदम
साथ रख कर फिर कुछ
नए की तलाश में रहता है |
उसका कारवां तो
यूँ ही चलता रहता है |
तभी तो ता उम्र वो
परेशान सा ही रहता है |
इस छोटे से दिल में न जाने
कितनों को वो पन्हा देता है |
फिर किसको छोड़ू किसको रखूं
इसी में उम्र बिता देता है |
जब वो थक हार के
सोचने जो लगता है |
तब तलख जिंदगी
आधी ही तो रह जाती है |
यूँ कहो की जिंदगी उससे
बहुत दूर निकल जाती है |
तो फिर कयूँ इस छोटे से दिल में
सबका का घर बनाये हम |
एक ही काफी नहीं जो
सबको यहाँ बसायें हम |
इन्सान का कारवां तो
हर वक़्त नया गुजरता है |
सबसे हम हंस के मिलें
इससे भी तो काम चलता है |
ये संसार तो प्यारा सा
एक बगीचा है |
इसमें रोज़ फूल खिले
तो ये हरदम महकता है |
यही तो हमारी जिंदगी को
खूबसूरती से रौशन करता है |
हममें जीने का नया होंसला
हर वक़्त भरता है |
7 टिप्पणियाँ:
एक मन को भाने वाली रचना ।
बहुत ही सुन्दर भावमय करते शब्द ।
सुन्दर भाव !
जब वो थक हार के
सोचने जो लगता है |
तब तलख जिंदगी
आधी ही तो रह जाती है |
यूँ कहो की जिंदगी उससे
बहुत दूर निकल जाती है
Dil ko Chhu gayi hai aapki rachna
बहुत - बहुत शुक्रिया दोस्तों |
"chhote se dil me kitno ko panah deta hai". bahut khoobsurat andaje-byan.
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