भीगे भीगे से शब्द
हैं व्याकुल कुछ
भावों का मुक्ताहार बनाने को !
स्वप्नों का जाल बुनकर
पलकों में मधु पराग छिपाए
ना जाने किसका इंतजार ,
हर एक दस्तक देती थी
उत्सुकता किसी सन्देश की !
नियति इन्तेजार करवाती रही
जीवन बीत गया !
आस की हुयी निराश में तबदीली
पलकों से स्वप्न झरें
कुछ टूटे बिखरे से
यहीं कहीं धरती पर !
ऐसे में हे ! ईश
तुम आये बनकर शिवम् स्वरूप
भावों का फिर संचार हुआ
नया मुक्ताहार हुआ
प्रेम नीर से रंजित
भीगे भीगे से शब्द
जो हैं व्याख्येय
श्वेत समर्पण रूप !!
प्रियंका राठौर
7 टिप्पणियाँ:
भाव भरी रचना। बधाई हो आपको।
@ बहुत अच्छा लगा आपकी रचना पढ़कर । मैं चाहूँगा कि इस सुंदर रचना को आप हिंदी ब्लागर्स फोरम पर भी अपने कर कमलों से सजा दें ।
eshvani@gmail.com
पर अपनी ईमेल आईडी भेज दीजिए ताकि आपको निमंत्रित किया जा सके ।
नियति इन्तेजार करवाती रही
जीवन बीत गया
bahut sundar rachna...
बेहद गहन अभिव्यक्ति।
aap sabhi ka bhut bhut dhanybad...@anver ji- maine aapke mail id pr apni id send ki thi...prantu hr baar mail reject ho gaya...kirpya btaye aage kya kru? dhanybad
Very easy .
आप अपनी आईडी हिंदी ब्लागर फोरम की नई पोस्ट पर अपनी टिप्पणी में पेश कर दीजिए , अभी तुरंत आपको निमंत्रित किया जाएगा ।
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Thanks for your valuable comment.