कौन है हम और है आये कहां से
क्या है हमारा ठिकाना
हंस देते है हम, जो पुछे है हमसे
बाते यही है जमाना।
गाते है क्यूं और चिल्लाते है क्यूं हम
बेकार है ये बताना
हमारे लिये तो लहू गर्म रखने का
छोटा सा है इक बहाना।
मगर याद रखना, लहू की हमारे
जो गर्मी रहेगी, यहां पर
उसे अपने खूं की, हर इक बूंद से है
उसी से है उबाला लगाना।
आये है हम तो, चले जायेगें भी
रह जायेगा ये तराना
कसम है तुम्हे कि हां बाद हमारे
तुम भी इसे गुनगुनाना।
http://rsnagie.blogspot.com
हंस देते है हम, जो पुछे है हमसे
बाते यही है जमाना।
गाते है क्यूं और चिल्लाते है क्यूं हम
बेकार है ये बताना
हमारे लिये तो लहू गर्म रखने का
छोटा सा है इक बहाना।
मगर याद रखना, लहू की हमारे
जो गर्मी रहेगी, यहां पर
उसे अपने खूं की, हर इक बूंद से है
उसी से है उबाला लगाना।
आये है हम तो, चले जायेगें भी
रह जायेगा ये तराना
कसम है तुम्हे कि हां बाद हमारे
तुम भी इसे गुनगुनाना।
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3 टिप्पणियाँ:
अपना पता खुद से ही पूछती एक खुबसूरत रचना |
एक खुबसूरत अंदाज़ |
खुबसूरत अंदाज़!!!
आये है हम तो, चले जायेगें भी
रह जायेगा ये तराना
कसम है तुम्हे कि हां बाद हमारे
तुम भी इसे गुनगुनाना!!!!
"कौन हैं हम और हैं आये कहाँ से, कहाँ है हमारा ठिकाना ." सुन्दर अभिव्यक्ति , अध्यातम की तरफ जाते भाव , अगर इन बातों को हम जान ले या जानने का प्रयास भी करने लगे तो बहुत सी बुराइयों एवं समस्याओं का हल खुद - ब- खुद हो जायेगा .
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Thanks for your valuable comment.