आदि अनादि कालों से
पौराणिक अपौराणिक गाथाओं से
'अर्धनारीश्वर ' संज्ञा की होती है पुष्टि
क्या है अर्थ इस शब्द का ?
निर्मित किया ब्रह्म ने
दो चेतन पिण्डों को
दिया एक नाम नारी का
और दूजा पुरुष का !
नारी कोमल सुकोमलांगी
पुरुष बलिष्ठ कठोर !
था पुरुष निर्मम भावशून्य
नष्ट कर देता किसी जड़ या चेतन को
बिना किसी अवसाद के !
तथापि थी नारी
भावप्रधान ममतामयी मूरत
स्रष्टि के कण - कण को
अपने कोमल स्पर्श से
सिक्त करना ही थी उसकी नियति !
देखा ब्रहम ने
दो परस्पर विरोधी स्वरूप
सोचा -
नारी दे रही जीवन
और कर रहा पुरुष नष्ट
उसकी रचित नव निर्मित स्रष्टि को !
संतुलित करने के लिए
करें क्या उपाय -
उसी क्षण अचानक
बोला अचेतन मन ब्रहम का
करो ऐसी रचना
जो सम्मिश्रण हो नारी पुरुष गुण का !
उपाय तो श्रेष्ठ था
पर थी समस्या एक
नारी पुरुष थे अलग - अलग पिण्ड
फिर उनका एक रूपांतरण
हो कैसे संभव
युक्ति सूझी उन्हें एक
बांध दिया उन्हें
एक दाम्पत्य बंधन में !
हल निकल आया
ब्रहम की समस्या का !
नारी के कोमल भाव
व पौरुषत्व पुरुष का
पोषक होंगें स्रष्टि के !
यही संकल्पना थी
' अर्धनारीश्वर ' की !
आधे भाव नारी के
आधी शक्ति पुरुष की
मिलाकर बनी एक
अलौकिक रचना
होकर दोनों में तादात्म्य स्थापित
अर्थ ज्ञात हुआ
सही विवाह बंधन का ,
भिन्न - भिन्न दो रूप
हुए जब एक
मिल गया नव जीवन
स्रष्टि को
एक अटल सत्य के साथ .....!!!
प्रियंका राठौर
3 टिप्पणियाँ:
shashvat saty ko ukerti aapki rachna prashansniy hai .shubhkamnaye .
अगर इस कथा से अतिरंजना को हटा दिया जाए तो इस्लाम में भी यही कहा जाता है कि पहली औरत की उत्पत्ति पहले पुरुष के वाम पक्ष से हुई है।
धन्यवाद !
---अत्यन्त सुन्दर भाव व समन्वित व्याख्या...सुन्दर कविता...
---स्त्री-पुरुष की श्रिष्टि के बाद ---अर्धनारीश्वर रूप में शिव प्रकट हुए व स्त्री-पुरुष की अपने अपने भाव में विभाज़ित होकर सभी स्त्री-पुरुष रूपों मे प्रविष्ट हुए ...इसीलिये स्त्री -पुरुष के युग्म होने पर ही श्रिष्टि होती है...
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