भाई मिथिलेश दुबे की पोस्ट 'जब नारी शील उघड़ने लगे' पर अब तक ज़बर्दस्त बहस छिड़ी हुई हैं । मेरे हाथ लग गए हैं पुराणरत्न डा. श्री श्याम गुप्ता जी । उनके एक ताज़ा सवाल के जवाब में मैंने अभी अभी कहा है कि
क्या देते हैं नारद जी ?
@ डा. श्याम गुप्ता जी ! आपने नारद जी को आदिसंवाददाता कहा है । आपने ही तो उन्हें संवाद देने वाला प्रथम पत्रकार कहा है और फिर आप ख़ुद ही पूछ रहे हैं कि उन्हें किसी ने कभी कुछ देते हुए देखा है ?
क्या आप सूचना देने को कुछ देना नहीं मानते ?
ध्यान रखिए कि आज के युग में सारे काम सूचना पर ही चल रहे हैं ।
इस तरह नारद जी केवल पत्रकारों में ही नहीं बल्कि समस्त गुप्तचरों में भी आदि हैं । उन्होंने कम से कम दो पदों की ज़िम्मेदारी का निर्वाह करके सीधे सीधे लाखों करोड़ों पत्रकारों और गुप्तचरों के लिए एक पद प्रकट किया और उनके लिए रोज़ी रोटी का साधन प्रदान किया ।
ऐसे में आप कैसे कह सकते हैं कि नारद जी ने किसी को कुछ नहीं दिया ?
आपको मुझसे पढ़ना होगा , एक शिष्य की भाँति ।
या तो राज़ी ख़ुशी तैयार हो जाइये वर्ना मैं ज़बर्दस्ती पढ़ाऊंगा ।
क्या देते हैं नारद जी ?
@ डा. श्याम गुप्ता जी ! आपने नारद जी को आदिसंवाददाता कहा है । आपने ही तो उन्हें संवाद देने वाला प्रथम पत्रकार कहा है और फिर आप ख़ुद ही पूछ रहे हैं कि उन्हें किसी ने कभी कुछ देते हुए देखा है ?
क्या आप सूचना देने को कुछ देना नहीं मानते ?
ध्यान रखिए कि आज के युग में सारे काम सूचना पर ही चल रहे हैं ।
इस तरह नारद जी केवल पत्रकारों में ही नहीं बल्कि समस्त गुप्तचरों में भी आदि हैं । उन्होंने कम से कम दो पदों की ज़िम्मेदारी का निर्वाह करके सीधे सीधे लाखों करोड़ों पत्रकारों और गुप्तचरों के लिए एक पद प्रकट किया और उनके लिए रोज़ी रोटी का साधन प्रदान किया ।
ऐसे में आप कैसे कह सकते हैं कि नारद जी ने किसी को कुछ नहीं दिया ?
आपको मुझसे पढ़ना होगा , एक शिष्य की भाँति ।
या तो राज़ी ख़ुशी तैयार हो जाइये वर्ना मैं ज़बर्दस्ती पढ़ाऊंगा ।
6 टिप्पणियाँ:
dr.anwar jamal ji aap sahi kah rahe hain aaj soochna par hi sab kuchh chal raha hai kintu dr.shyam gupt ji ki to nature hi satya ko jhuthlane ki lagti hai isme ham ya aap kar bhi kya sakte hai sivay unki baton ko najar andaj karne ke..
शालिनी जी ---सूचना संवाद दाता अपने धन्धे के लिये अखवार वालों को देते हैं पैसे लेकर, और हम पैसे देकर अखवार खरीदते हैं.....देना उसे कहते हैं जो मुफ़्त में दिया जाय बिना प्रतिदान के.....
---सूचना केवल दुनिया के व्यवहार -धन्धे का एक अन्ग है---दुनिया नही....दुनिया सूचना पर नहीं --सूचना का धन्धा दुनिया के कारण च्लरहा है....
are baap re
@ डाक्टर बाबू श्याम ! सूचना के बहुत से प्रकार हैं । आप अपनी माँ से पैदा हो गए हैं । यह सूचना भी एक दाई ने दी थी आपके पिताश्री को और सूचना सुनकर आपके पिताजी ने उसे पैसे दिए थे तो क्या यह सूचना देकर दाई द्वारा पैसे लेना गलत था ?
सही कहा, वह धन्धे वाली सूचना थी---मुफ़्त नहीं.. अतः दाई ने कुछ दिया नहीं अपना धन्धा-कर्म निभाया....वह देवता नहीं थी....इसी संदर्भ में तो बात होरही है...जो जाने कहां चली गई...
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