" मिज़ाज "
बदला- बदला मिजाज़ है,
तेरी बेवफाई में कोई राज़ है
मुझसे क्या कसूर हुआ,
मेरी किस बात से खफा हो तुम,
बिना बताये मैं क्या जानूं ,
भ्रांतियों के किस दायरे में हो ग़ुम ,
चंद रोज़ का रुतबा तेरा,
जिस पर इतना नाज़ है,
बदला-बदला मिज़ाज ...................................................
सितमगर न डाह सितम इतना ,
तडपाहट में दर्द कम ना होगा ,
तूँ क्या जाने जुदाई का गम,
पहलू में तेरे गम ना होगा ,
कोई आंच ना आए तुझ पर,
"कायत" ये जख्मी दिल की आवाज है,
बदला-बदला मिज़ाज है,
तेरी बेवफाई में कोई राज़ है...............
2 टिप्पणियाँ:
कुच्छ तो कमी रही होगी यूं ही कोई बेवफ़ा नहीं होता !
सच कहा--यूं ही कोई वेवफ़ा नहीं होता...आत्मालोचन कीजिये ज़नाब...
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