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Written By आपका अख्तर खान अकेला on शुक्रवार, 4 फ़रवरी 2011 | 4:48 pm

Tuesday, February 1, 2011


क्यूँ देखता हूँ रोज़
सूरज की तरह
में तुम्हें
क्यूँ देखता हूँ रोज़
चाँद की तरह
में तुम्हें
क्यूँ देखता हूँ रोज़
चमकते तारों की तरह
में तुम्हे
जब तुमसे
चाँद ,तारे और सूरज की तरह
मुलाक़ात का
कोई वायदा भी नहीं हे
क्यूँ देखता हूँ
एक टक
यूँ ही
गुमसुम सा में तुम्हें ।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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3 टिप्पणियाँ:

shyam gupta ने कहा…

वायदा नहीं---देखने के अलावा कुछ कर भी तो नहीं सकते...

एस एम् मासूम ने कहा…

हम्म बीवी पुराण.

Minakshi Pant ने कहा…

कुछ तो सुकून मिलता ही होगा वर्ना इस कदर निहारने का कारण शयद कुछ भी नहीं |
सुकून के एहसास को दर्शाती रचना |

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