कह्दो हे प्रिय ! प्यार मुझे तुम क्यों करते हो?
मेरे जगमग दीप शिखा से,
रूप के यदि प्रिय तुम हो पुजारी ।
तो फिर प्यार करो क्यों मुझसे--
पूजा करो , दिव्य दिनकर की;
जो अनंत ज्योतिमय रूप से ,
शोभित-दीपित अखिल विश्व में |.....कहदो हे प्रिय....||
मेरे इस मादक यौवन की ,
यदि चाहत है तुमको प्रियतम |
तो फिर प्यार करो क्यों मुझसे--
चाहो उस मधुऋतु को हे प्रिय ,
जिसके यौवन की मादकता-
प्रतिपल, नित नूतन मादक है|....कहदो हे प्रिय....||
मेरे हीरे- मोती शोभित,
इस तन से यदि प्यार करो प्रिय|
तो फिर प्यार करो क्यों मुझ से?
उस असीम जलनिधि को चाहो,
जिसकी गहराई में कितने-
अगणित रत्न समाये रहते |....कहा दो हे प्रिय.....||
मेरे इस निश्छल ह्रदय को ,
यदि चाहो प्रिय तुम अपनाना |
मेरे इस विश्वास भरे मन-
को यदि चाहो अपना बनाना |
मेरी प्रीति को प्यार करो प्रिय |
तो तुम मुझको प्यार करो प्रिय |
तो मुझको मनुहार करो प्रिय |.......कहदो हे प्रिय....||
हे प्रिय निश्छल प्रीति करोड़ों ,
दिनकर से भी ज्योतिर्मय है |
पावन-निश्छल प्रेम की महक,
मादकतम ऋतु से मादक है |
सच्चे प्यार की गहराई में ,
जाने कितने रत्नाकर हैं |......कहदो हे प्रिय.....||
जो तुम इतना ज्योतित गहरा ,
मादक प्यार करो प्रिय मुझसे|
तो तुम प्यार करो मेरे प्रिय-
निश्छल प्यार भरे इस मन से |
विश्वासों से भरे ह्रदय से ,
पावन भाव भरे इस तन से ||
तो मैं तुम पर सब कुछ वारूँ ,
तन मन वारूँ, जीवन वारूँ |
कहदो हे प्रिय प्यार मुझे तुम क्यों करते हो?
कहदो मेरी प्रीति को प्यार ही तुम करते हो ||
मेरे जगमग दीप शिखा से,
रूप के यदि प्रिय तुम हो पुजारी ।
तो फिर प्यार करो क्यों मुझसे--
पूजा करो , दिव्य दिनकर की;
जो अनंत ज्योतिमय रूप से ,
शोभित-दीपित अखिल विश्व में |.....कहदो हे प्रिय....||
मेरे इस मादक यौवन की ,
यदि चाहत है तुमको प्रियतम |
तो फिर प्यार करो क्यों मुझसे--
चाहो उस मधुऋतु को हे प्रिय ,
जिसके यौवन की मादकता-
प्रतिपल, नित नूतन मादक है|....कहदो हे प्रिय....||
मेरे हीरे- मोती शोभित,
इस तन से यदि प्यार करो प्रिय|
तो फिर प्यार करो क्यों मुझ से?
उस असीम जलनिधि को चाहो,
जिसकी गहराई में कितने-
अगणित रत्न समाये रहते |....कहा दो हे प्रिय.....||
मेरे इस निश्छल ह्रदय को ,
यदि चाहो प्रिय तुम अपनाना |
मेरे इस विश्वास भरे मन-
को यदि चाहो अपना बनाना |
मेरी प्रीति को प्यार करो प्रिय |
तो तुम मुझको प्यार करो प्रिय |
तो मुझको मनुहार करो प्रिय |.......कहदो हे प्रिय....||
हे प्रिय निश्छल प्रीति करोड़ों ,
दिनकर से भी ज्योतिर्मय है |
पावन-निश्छल प्रेम की महक,
मादकतम ऋतु से मादक है |
सच्चे प्यार की गहराई में ,
जाने कितने रत्नाकर हैं |......कहदो हे प्रिय.....||
जो तुम इतना ज्योतित गहरा ,
मादक प्यार करो प्रिय मुझसे|
तो तुम प्यार करो मेरे प्रिय-
निश्छल प्यार भरे इस मन से |
विश्वासों से भरे ह्रदय से ,
पावन भाव भरे इस तन से ||
तो मैं तुम पर सब कुछ वारूँ ,
तन मन वारूँ, जीवन वारूँ |
कहदो हे प्रिय प्यार मुझे तुम क्यों करते हो?
कहदो मेरी प्रीति को प्यार ही तुम करते हो ||
3 टिप्पणियाँ:
bahut sundar bhavabhivyakti .badhai
धन्यवाद शिखा जी---हिन्दी का ब्लोग--हिन्दी की उन्नति को है---हिन्दी का फ़ोन्ट भी डलवा लीज़िये , सुविधा रहेगी....
कहदो हे प्रिय प्यार मुझे तुम क्यों करते हो?
कहदो मेरी प्रीति को प्यार ही तुम करते हो
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Thanks for your valuable comment.