वेसे ये नई बात नहीं ये तो रोज़ का ही नज़ारा हैं !
हर किसी अख़बार के इक नए पन्ने मैं ...
आरुशी जेसी मासूम का कोई न कोई हत्यारा है !
पर लगता है आरुशी के साथ मिलकर सभी मासूमों ने
एक बार फिर से इंसाफ को पुकारा है !
क्या छुपा है इन अपलक निहारती आँखों मैं ,
ये कीससे गुहार लगाती है ?
खुद का इंसाफ ये चाहती है ?
या माँ - बाप को बचाना चाहती है ?
उसने तो दुनिया देखि भी नहीं ,
फिर कीससे आस लगाती है !
जीते जी उसकी किसी ने न सुनी ,
मरकर अब वो किसको अपना बतलाती है !
गुडिया ये रंग बदलती दुनिया है !
इसमें कोई न अपना है !
तू क्यु इक बार मर कर भी ...
एसे मर - मर के जीती है !
यहाँ एहसास के नाम पर कुछ भी नहीं ,
मतलब की दुनिया बस बसती है !
न कोई अपना न ही पराया है
लगता है हाड - मांस की ही बस ये काया है !
जिसमें प्यार शब्द का एहसास नहीं !
किसी के सवाल का कोई जवाब नहीं !
तू अब भी परेशान सी रहती होगी ?
लगता है इंसाफ के लिए रूह तडपती होगी !
अरे तेरी दुनिया इससे सुन्दर होगी ?
मत रो तू एसे अपनों को !
तेरी गुहार हर मुमकिन पूरी होगी !
तेरे साथ सारा ये जमाना है !
कोई सुने न सुने सारी दुनिया की ...जुबान मै
सिर्फ और सिर्फ तेरा ही फसाना है !
4 टिप्पणियाँ:
sahi kaha meenakshi ji
matlab ki duniya hai.bhavpoorn kavita.
मार्मिक रचना।
मीनाक्षी जी जब मैं ये ख़बर टीवी पर पहली मर्तबा देखा तो शक माँ-बाप पर ही आ रहा था !
behatreen kavita!
मीनाक्षी जी जब मैं ये ख़बर टीवी पर पहली मर्तबा देखा तो शक माँ-बाप पर ही आ रहा था !
behatreen kavita!
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