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अगज़ल----- दिलबाग विर्क

Written By डॉ. दिलबागसिंह विर्क on सोमवार, 21 फ़रवरी 2011 | 6:38 pm

                     
प्यार-मोहब्बत के फरिश्तों का हमजुबां होना 
सब गुनाहों से बुरा है दिल में अरमां होना .
          अहसास की आँखों से देखी हैं रुस्वाइयाँ 
          महज़ इत्तफाक नहीं दिल का परेशां होना .
नजदीकियां भी बुरी होती हैं दूरियों की तरह 
जरूरी है कुछ फासिलों का दरम्यां होना .
          गर गरूर है उन्हें महलों का तो रहने दो 
          मेरे लिए काफी है सिर पे आसमां होना .
न जाने क्यों खुदा होना चाहते हैं लोग
काफी होता है एक इंसां का इंसां होना .
         जीना मकसद है जिंदगी का 'विर्क' जीता रह 
         क्यों चाहता है अपने कदमों के निशां होना .

                          *****
     ----- sahityasurbhi.blogspot.com
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4 टिप्पणियाँ:

Bisari Raahein ने कहा…

DIL ME ARMAN HONA GUNAH NAHI HAI SIR, KHUD KO KHUDA MAAN LENA JAROOR GUNAH HAI. BAKI ...." KAFI HAI EK INSAN KA INSAN HONA" WAH KYA KHOOB KAHA HAI. IS BHAV KE AAGE KUCHH KAHNE KO RAH HI NAHI JATA. BAHUT ACHHA.

Saleem Khan ने कहा…

GR8

DR. ANWER JAMAL ने कहा…

आपकी पोस्ट अच्छी लगी ।

shyam gupta ने कहा…

यार ये तो गज़ल होगयी...

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