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हाइकु ----- दिलबाग विर्क

Written By डॉ. दिलबागसिंह विर्क on शुक्रवार, 25 फ़रवरी 2011 | 7:41 am

    संवाद कर 
    असहमति पर 
    विवाद नहीं .

     करते सभी 
     मर्म पर प्रहार 
     चूकें न कभी .

      हारते सदा 
       ये बादल सूर्य से 
       जिद्द न छोड़ें .

       जीओ तो ऐसे
       न डरना किसी से 
       न ही डराना .

       कितना थोथा 
       बादल का घमंड 
       हवा के आगे .

       आओ बचाएं 
       रिश्तों में गर्माहट 
       प्यार दिलों का .

      पिघलाएगी 
      रिश्तों पे जमी बर्फ 
      प्यार की आंच .

        * * * * *
            ----- sahityasurbhi.blogspot.com  
   
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4 टिप्पणियाँ:

Saleem Khan ने कहा…

आओ बचाएं
रिश्तों में गर्माहट
प्यार दिलों का .

पिघलाएगी
रिश्तों पे जमी बर्फ
प्यार की आंच

vandana gupta ने कहा…

आओ बचाएं
रिश्तों में गर्माहट
प्यार दिलों का .

पिघलाएगी
रिश्तों पे जमी बर्फ
प्यार की आंच .

बहुत सुन्दर ख्याल्………काश ऐसा संभव हो सके।

Shikha Kaushik ने कहा…

bahut sateek haiku hain .badhai.

Bisari Raahein ने कहा…

आपके भावों की खिलाफत नहीं है पर मेरा

विचार तो ये है ........

हवाएं लाख जोर लगाएँ,

चाहें आंधियाँ बन कर ,

पर घिर के आए जो बादल ,

वो छा ही जाता है ............

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