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अंदाज ए मेरा: मुहब्‍बत...

Written By Atul Shrivastava on सोमवार, 14 फ़रवरी 2011 | 10:27 am

अंदाज ए मेरा: मुहब्‍बत...: "' कल तुम्‍हारी आवाज शहर में आई थी, कल चांद दिखा था, लोगों को लगा कि ईद थी कल, कैसे बताऊं जमाने को कि वो तुम्‍हारा चेहरा था...’ये हद है... किसी को चाहने की। जहां सारे बंधन, सारी सीमाएं अपना अस्तित्‍व खो देते हैं। कौन कहता है कि दुनिया ‘मैं’ की ख्‍वाहिश में सारी उम्र का सौदा कर लेती है। जब भी किसी दिल में प्‍यार पलने लगता है, उसका सब कुछ ‘तुम’ पर न्‍यौछावर हो जाता है। हर सांस उस नाम को लिख दी जाती है। हर सपना उसका होता है। हर चाहत उसके ख्‍याल तक आकर रूक जाती है। जीवन की सारी परिभाषा उसके नाम के हर्फों में पूरी हो जाती है।
ये इश्‍क है। खुदा की तरह पाक। ये मुहब्‍बत है। ईश्‍वर के नाम की तरह पवित्र। फसाने लिखे गए हैं, प्‍यार करने वालों पर गुजरे वक्‍त में। इतिहास लिखा जाएगा कल की‍ फिजा में, आज जिक्र है जिनकी चाहत का जमाने में। गर सवाल कभी दिल में उठे कि मजनू पागल क्‍यो हो गया था तो लैला बनकर सोचो। जवाब भीगी आंखों में सिसकती रातों में मिल जाएगा।
रोने के कई मौसम आते हैं। जिंदगी में कभी कभी ही तो हंसना मयस्‍सर होता है, उस रोने के मौसम को बुलाने के लिए। आज की मुलाकात की खुशी से जो आखें चमक रही हैं, कल धुआं होगा इनमें। आज जो हंसी की खनक गूंजी है, कल होठों पर कंपन होगा। अकेले होंगे हम और तुम, आंसुओं की गरमी और जहां से फना हो जाने जैसी बर्फ सी ठंडी सोच के साथ। ... लेकिन अफसोस न करना, मुहब्‍बत रूसवा हो जाएगी। जमाने से मत लडना, इश्‍क की तौहीन होगी। क्‍या हुआ जो तुम्‍हे जमाने ने उसका हमदम नहीं माना। ये क्‍या कम है कि उसकी चाहत, उसका नाम, उसकी हर सोच तुम तक आकर रूक जाती है।
जब भी इश्‍क करना कभी रश्‍क न लाना दिल में। जब भी जिंदगी को किसी के नाम लिखना, वसीयत के कागजात न बदलवाना। प्‍यार ने कब सीखा है लेना। देने के लिए ही जिंदगी की घडिया कम होंगी।
(मेरी डायरी में कई बरस पहले नोट किए गए ये शब्‍द इस प्रेम दिवस पर पेश है) "
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