बिटिया
"बेटी न कहो मुझे
मैं आपका बेटा हूँ पापा ."
- यह जिद्द
बिटिया करती है अक्सर
पता नहीं
क्यों और कैसे
लड़का होने की चाह
घर कर गई है
उसके मन में .
वैसे मान सकता हूँ मैं
बेटा - बेटी एक समान होते हैं
बेटी भी बेटा ही होती है
मगर नहीं मान पाता
बेटी को बेटा .
कैसे मानूं ?
क्यों मानूं ?
बेटी को बेटा
बेटा होना कोई महानता तो नहीं
बेटी होना कोई गुनाह तो नहीं
बेटी का बेटी होना ही
क्या काफी नहीं ?
क्यों पहनाऊँ मैं उसे
बेटे का आवरण ?
नासमझ
नन्हीं बिटिया को
जिद्द के चलते
भले ही मैं
कहता हूँ बेटा उसे
मगर मेरा अंतर्मन
मानता है उसे
सिर्फ और सिर्फ
प्यारी-सी बिटिया .....
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----- sahityasurbhi.blogspot.com
4 टिप्पणियाँ:
सुन्दर संदेश देती सार्थक रचना के लिये बधाई।
बहुत ही सुन्दर ...।
बेहतरीन। मेरी भी एक बिटिया है। मेरे दिल की बात कह दी आपने।
bahut sundar rachna
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Thanks for your valuable comment.