नियम व निति निर्देशिका::: AIBA के सदस्यगण से यह आशा की जाती है कि वह निम्नलिखित नियमों का अक्षरशः पालन करेंगे और यह अनुपालित न करने पर उन्हें तत्काल प्रभाव से AIBA की सदस्यता से निलम्बित किया जा सकता है: *कोई भी सदस्य अपनी पोस्ट/लेख को केवल ड्राफ्ट में ही सेव करेगा/करेगी. *पोस्ट/लेख को किसी भी दशा में पब्लिश नहीं करेगा/करेगी. इन दो नियमों का पालन करना सभी सदस्यों के लिए अनिवार्य है. द्वारा:- ADMIN, AIBA

Home » » कविता ----- दिलबाग विर्क

कविता ----- दिलबाग विर्क

Written By डॉ. दिलबागसिंह विर्क on शनिवार, 26 फ़रवरी 2011 | 3:07 pm

                 बिटिया
                   "बेटी न कहो मुझे 
             मैं आपका बेटा हूँ पापा ."
             - यह जिद्द 
             बिटिया करती है अक्सर 
             पता नहीं 
             क्यों और कैसे 
             लड़का होने की चाह
             घर कर गई है 
             उसके मन में .

             वैसे मान सकता हूँ मैं 
             बेटा - बेटी एक समान होते हैं 
             बेटी भी बेटा ही होती है 
             मगर नहीं मान पाता 
             बेटी को बेटा .
             कैसे मानूं  ?
             क्यों मानूं  ?
             बेटी को बेटा 
             बेटा होना कोई महानता तो नहीं 
             बेटी होना कोई गुनाह तो नहीं 
             बेटी का बेटी होना ही 
             क्या काफी नहीं  ?
             क्यों पहनाऊँ मैं उसे 
             बेटे का आवरण  ?

              नासमझ 
              नन्हीं बिटिया को 
              जिद्द के चलते 
              भले ही मैं 
              कहता हूँ बेटा उसे 
              मगर मेरा अंतर्मन 
              मानता है उसे 
              सिर्फ और सिर्फ 
              प्यारी-सी बिटिया .....

                     ***** 


     ----- sahityasurbhi.blogspot.com


Share this article :

4 टिप्पणियाँ:

vandana gupta ने कहा…

सुन्दर संदेश देती सार्थक रचना के लिये बधाई।

सदा ने कहा…

बहुत ही सुन्‍दर ...।

Atul Shrivastava ने कहा…

बेहतरीन। मेरी भी एक बिटिया है। मेरे दिल की बात कह दी आपने।

kanu..... ने कहा…

bahut sundar rachna

एक टिप्पणी भेजें

Thanks for your valuable comment.