वैलेंटाइन डे युवाओं के लिए एक त्यौहार - सा महत्व रखता है , लेकिन भारतीय संस्कृति के पक्षधर इसका विरोध करते हैं . इस विरोध को दो पीढ़ियों के अन्तराल के कारण उत्पन्न सोच में अंतर के रूप में भी देखा जाता है . लेकिन जब विरोध सिर्फ वैलेंटाइन दिवस को लेकर ही प्रखर हो तब इसे सिर्फ पीढ़ियों का अंतर कहना ठीक नहीं लगता . वास्तव में यह संस्कृतियों का टकराव है . युवा पीढ़ी पाश्चात्य संस्कृति को ही अच्छा मानती है . पाश्चात्य संस्कृति पूरी तरह से बुरी है यह तो नहीं कहा जा सकता लेकिन भारत में इसका जो रूप अपनाया जा रहा है वो भारत के अनुकूल नहीं . प्यार बुरा नहीं है , लेकिन प्यार का जो स्वरूप पाश्चात्य संस्कृति में है वो भारत में तो कदापि नहीं हो सकता . भारत में परिवार समाज का आधार है और परिवार नामक संस्था शादी की मांग करती है . शादी औपचारिक भी हो सकती है और यह प्रेम विवाह भी . वास्तव में प्रेम में पवित्रता जरूरी है . वैलेंटाइन डे आवारागर्दी का सर्टिफिकेट नहीं हो सकता . इसकी विद्रूपताओं के कारण ही इसका विरोध होता है . फिर आप प्रेम को एक दिन के साथ कैसे बांध सकते हैं . प्रेम शुरू करने के लिए क्या किसी निश्चित दिन का इंतजार किया जा सकता है ? इतना ही नहीं क्या प्यार किया जा सकता है ? जो किया जाए वो प्यार ही कहाँ होता है . प्यार तो होता है और यह कब होगा यह निश्चित नहीं होता .
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3 टिप्पणियाँ:
वैलेंटाइन डे महत्वपूर्ण नहीं , प्यार महत्वपूर्ण है , प्यार की पवित्रता महत्वपूर्ण है . युवाओं को भारतीय रस्मों-रिवाजों कि कद्र करनी ही चाहिए , आखिर हम भारतीय हैं .
प्यार तो सभी के लिए महत्वपूर्ण है.
बसंतोत्सव की बधाई...
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