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हाजी अब्दुल रहीम निःस्वार्थ सेवा की मिसाल

Written By DR. ANWER JAMAL on सोमवार, 5 सितंबर 2011 | 9:44 am


हाजी अब्दुल रहीम अंसारी साहब
कागज़ी समाजसेवी सबक़ ले.. 
समाचार पत्रों में आप अक्सर समाजसेवियों के बारे में पढ़ते रहते है. किन्तु जो समाजसेवी समाचार पत्रों की सुर्खियाँ बनते है उसके पीछे कितनी सतनी सच्चाई होती है. शायद हर पत्रकार जानता है. ऐसे समाजसेवियों को आईना दिखने के लिए हैं.  हाजी अब्दुल रहीम अंसारी, एक ऐसा नाम जो उन लोंगो के लिए के लिए प्रेरणा श्रोत है जो खुद को समाजसेवी कहलाने के लिए परेशान रहते है किन्तु समाजसेवा का कोई कार्य नहीं करते. 
मूलतः संत रविदासनगर भदोही जनपद के काजीपुर मुहल्ले के रहने वाले अब्दुल रहीम अंसारी नगर के अयोध्यापुरी प्राथमिक विद्यालय में सहायक अध्यापक के पद पर कई वर्षो तक  कार्यरत रहे. २००७ में वे इसी विद्यालय से अवकाश प्राप्त किये, दो दिन घर पर रहने के बाद उन्हें एहसास हुआ की वे घर पर खाली नहीं रह सकते. लिहाजा फिर पहुँच गए उसी स्कूल जहाँ बच्चो को पढ़ाते थे, उन्हें देखते ही बच्चे चहक उठे. उन्होंने विद्यालय के प्रधानाचार्य से पढ़ाने की इच्छा जाहिर की और नियमित रूप से विद्यालय आकर पढ़ाने लगे. यही नहीं विद्यालय का लेखा जोखा पहले उन्ही के पास रहता था, दुबारा यह जिम्मेदारी उन्हें फिर सौंप दी गयी.  २००९ में उन्होंने हज भी किया. पांच वक़्त के नमाज़ी अब्दुल रहीम अभी तक नियमित रूप से विद्यालय  आकर बच्चो को शिक्षा देते रहते है. उन्हीं के दिशा निर्देश पर पूरा विद्यालय परिवार चलता है. एक बार विद्यालय के प्रधानाद्यापक और सहायक अध्यापक राजीव श्रीवास्तव ने उन्हें अपने वेतन से कुछ पारिश्रमिक देने की बात कही तो वे  भड़क उठे.  कहा आज भी सरकार उन्हें आधी तनख्वाह देती है. हराम का लेना उन्हें पसंद नहीं जब तक शरीर साथ देगा वे बच्चों को नियमित शिक्षा देंगे. यही नहीं वे होमियोपैथिक के अच्छे जानकर भी है. विद्यालय के बच्चे जब बीमार होते हैं तो वही दवा देते हैं.. यही नहीं जो भी उनके पास इलाज के लिए पहुँचता है. उसे भी दवा देते है. और इस दवा का वे कभी एक पैसा तक नहीं लेते. आज वे अपने मुहल्ले में वे सम्मान की दृष्टि से देखे जाते है.  आज जहा लोग पैसे के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाते है. ऐसे में वे सम्मान जनक पात्र ही नहीं वरन पूरे समाज के लिए प्रेरणास्रोत  है.
सच इंसानियत, समाजसेवा का जज्बा हर इन्सान में होना चाहिए चाहे वह किसी भी धर्म का हो. ऐसे महान व्यक्तित्व को मैं सलाम करता हूँ. यदि ऐसे लोंगो का अनुसरण लोग करें तो जरा सोचिये समाज का क्या स्वरूप होगा. 
हाजी अब्दुल रहीम साहब के बारे में हमें यह सारी जानकारी हमारे मित्र हरीश सिंह जी ने दी है जो कि ख़ुद भदोही में ही रहते हैं। यह जानकर अच्छा लगता है कि हमारे दरम्यान अभी ऐसे लोग मौजूद हैं जो कि अपने फ़र्ज़ पहचानते हैं और उसे अदा करते हैं और यह तो सोने पर सुहागे जैसा सुखद है कि यह सब करने वाला एक मुसलमान है।
आदर्श शिक्षक के रूप में एक मुसलमान को पाना उन तमाम धारणाओं को निर्मूल कर देता है जो कि नफ़रत का बीज रोपने वाले अक्सर ही जन गण के मन में साज़िश के तौर पर डालते रहते हैं।
हमारी दुआ है कि मुसलमानों को विशेष रूप से हाजी जी के अमल से प्रेरणा मिले और यूं तो वह हरेक के लिए एक प्रेरणा स्रोत हैं ही।
ब्लॉगर्स मीट वीकली में आज सबसे पहले हाजी अब्दुल रहीम साहब का ही ज़िक्र किया गया है। जिसे आप इस लिंक पर देख सकते हैं- 
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