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Written By तरूण जोशी " नारद" on रविवार, 25 सितंबर 2011 | 2:01 pm















ना जीने की कोई वजह है  ना है कोई साथ
इस अकेलेपन में कौन थामेगा मेरा हाथ
इन अनजानों के समंदर में हर तरफ लगी है घात
हर मोड़ पर है शिकारी शिकार करने को तैनात

नारद इस जहाँ में हर एक शिकारी है
दिल न लगाना तो जिन्दगी से गद्दारी है
ये गद्दारी जो तुम कर लो तो जिन्दगी तुम्हें देती है सजा
जीते रहो इस जहां में तनहा बस यही है सजा

और जो ना की गद्दारी और इश्क कर दिया
अपनी जिंदगी को किसीके नाम कर दिया
तो फिर इसका एक इनाम मिल गया
इनाम में बेवफा का खिताब मिल गया

नारद इस जहाँ के रंग बड़े निराले हैं
जो दीखते  गोरे है बिम्ब में वो ही काले हैं

असमाप्य ...........

"नारद"
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