आम तौर पर लोग यह शिकायत करते हैं कि सरकार हिंदी के प्रति उपेक्षा का भाव रखती है लेकिन जो लोग इस तरह की चिंताएं जताया करते हैं उनमें से अक्सर खुद हिंदी के प्रति उदासीन हैं। ऐसे लोगों की उदासीनता के चलते ही हिंदी की सबसे बड़ी सोशल नेटवर्किंग साइट 'ब्लॉग प्रहरी' को अब अंग्रेजी की ओर रूख करना पड रहा है।
समय समय पर कनिष्क कश्यप जी से हमारी बातें होती रही हैं और उनकी मेहनत और लगन देखकर हमेशा ही एक अहसास हुआ कि आखिर लोग एक रचनात्मक काम में भी उनका साथ क्यों नहीं दे रहे हैं ?
क्या सिर्फ इसलिए कि वे किसी गुट का हिस्सा नहीं हैं ?
समय समय पर कनिष्क कश्यप जी से हमारी बातें होती रही हैं और उनकी मेहनत और लगन देखकर हमेशा ही एक अहसास हुआ कि आखिर लोग एक रचनात्मक काम में भी उनका साथ क्यों नहीं दे रहे हैं ?
क्या सिर्फ इसलिए कि वे किसी गुट का हिस्सा नहीं हैं ?
इस गुटबंदी ने हिंदी ब्लॉगिंग का बेड़ा गर्क करके रख दिया है।
हरेक सकारात्मक काम इस गुटबंदी की भेंट चढ गया है लेकिन ये गुटबाज अपनी हरकतों से बाज नहीं आते और दुख की बात यह है कि ये बड़े ब्लॉगर भी कहलाते हैं।
8 टिप्पणियाँ:
शुक्रिया ।
दुखद है ..
सही कहा अनवर जमाल साहब...पर क्या गुटबंदी आपके यहाँ नहीं है ....ध्यान से देखिये ....ज़रा सा विपरीत लिखते ही कमेन्ट छापा ही नहीं जाता...डिलीट होजाता है ...
डॉ अनवर जामल जी , ब्लॉग प्रहरी का सदस्य बनने के बाद हमारे पास ऐसी इ मेल आने लगी कि हम हैरान रह गए । इसलिए सदस्यता हटा दी ।
इसमें गुटबाजी की कोई बात नहीं है।
गुटबाजी ने बेडा गर्क कैसे किया --कृपया यह भी बताएं ।
देश की खातिर तो सब हो रहा है,
फिर भी देश पता नहीं क्यूँ रो रहा है,
हाल बेहाल है सभी का इस देश में,
छोड़ इस देश को बस रहे सब विदेश में,
@ आदरणीय डा. दराल जी ! पहले आप यह बताएं कि क्या आप जानते हैं कि हिंदी ब्लॉग जगत में गुटबंदी भी चल रही है और उनमें आपस में एक दूसरे से जड़ खोदने की कोशिशें भी की जाती हैं ?
अगर आप यह जानते हैं तो अवश्य ही आगे की कहानी भी समझ सकते हैं।
@ डा. श्याम गुप्ता जी ! आपने हमें गालियां दी हैं और हमने उन्हें भी प्रकाशित किया है और वे हमारी पोस्ट्स पर आज भी यथावत हैं, आप अपने किस कमेंट के किस ब्लॉग पर न छापे जाने की बात कर रहे हैं ?
जरा खुल कर बताएं भाई !
@ T. S. Daral!
एक सदस्य ने हमें मेल किया और पूछा कि , ब्लॉगप्रहरी पर हमारा पासवर्ड खो गया है. क्या करूँ ? हमने लिखा कि इंटरनेट इस्तेमाल करने छोड़ दें.
यह सभी को पता है , कि किसी भी सेवा ..जहाँ आपको रजिस्टर करने का विकल्प हों , वहीँ .. आपको फोरगेट पासवर्ड का भी विकल्प होता है.
अब दराल जी , आपके फेसबुक से भी हटने का समय आ गया है. मैं फेसबुक पर जाऊंगा ..आपको एक मैसेज भेजूंगा और वह मैसेज आपके मेल बक्से में पहुंचेगा और आप फेसबुक छोड़ देंगे.
आपका यह लिखना एक और उदहारण है कि कैसे एक गुट ब्लोग्प्रहरी की सफलताओं से घबरा गया है.
ब्लॉगप्रहरी के अपने खाते की सेटिंग्स में जा कर ..आप मैसेज ब्लाक कर सकते हैं , कि मित्र के आलावा अन्य सदस्य आपको कोई व्यक्तिगत सन्देश नहीं भेज पाएं.
ब्लॉगप्रहरी एक ट्वीटर और फेसबुक के सामान ही बहुत सारे विकल्प और सुविधाओं से परिपूर्ण है. एक दिन में न तो आप फेसबुक सीख लिए थे न ही आप ब्लॉगप्रहरी को सीख सकते हैं.
ये बात तो मैंने अपनी पोस्ट मे तब ही लिखा था जब मै बिलकुल नया था और किसी को जानता भी नहीं था... ब्लॉग वाणी के बंद होने के बाद कई मित्रों को ब्लॉगवाणी के संचालकों के सामने गिड़गिड़ाते भी देखा है मैंने और तन मन धन से सहयोग देने की बात करते हुए भी देखा, किन्तु वास्तविकता कुछ और ही दिखती है, किसी सार्थक प्रयास को केवल इस लिए उदासीनता और विरक्ति देखनी पड़े क्योंकि वह निर्गुट है तो यह हिन्दी और हिन्दी ब्लागिंग दोनों के लिए दुर्भाग्यशाली है । वैसे हर विधा मे मंथन आवश्यक्त है ताकि गरल और अमिय का भेद हो सके किन्तु इसका परिणाम सृजनात्मक और सार्थक हो तभी यह उचित है... मै बेबाक कहना चाहूँगा कि हमें किसी भी रुचि, वाद, अथवा गुटबाजी से ऊपर उठ कर हिन्दी और हिन्दी ब्लागिंग के लिए यथासंभव अपना योगदान देना चाहिए
एक टिप्पणी भेजें
Thanks for your valuable comment.