खून से लिखे थे ख़त वो दिल की फरियाद के
तड़पता था दिल वो मेरा तेरी ही याद में
वस्ल में रही तमन्ना तेरे ही दीदार की
जब हुआ दीदार तो वो घडी थी बहार की
वो बहार भी है रुक गई , वो बयार भी है मिट गयी
इन आँधियों से की है नारद उम्मीद क्यूँ तुने प्यार की
कांटो से उलझ कर घाव ही मिल पता है
बेवजह ही शिराओं से लहू छलक जाता है
इश्क करने की "नारद" यही एक कहानी है
लोग कहते है की इश्क जिंदगानी है
पर माना है मैंने बस यही* एक बेगानी है
*बस जिंदगी ही बेगानी है
"नारद"
2 टिप्पणियाँ:
उफ़ ……………सच कहा ज़िन्दगी ही बेगानी है।
Dhanywaad vandanaji
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