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जीवन के छंद

Written By नीरज द्विवेदी on मंगलवार, 20 सितंबर 2011 | 12:16 pm



नौका को सागर की लहरों पर
पति और पत्नी के झगड़ों पर,
एहसास प्यार का होता है,
गऊयों को अपने बछड़ों पर॥

हिन्दू मुस्लिम के दंगों पर,
भाई भाई के झगड़ों पर,
एहसास दर्द का होता है,
धरती को अपने टुकड़ों पर॥

पेड़ों पर चढ़ती बेलों पर,
उन पर इठलातीं कलियों पर,
एहसास प्यार का होता है,
मिटटी को जौं की फलियों पर॥

नदिया के दोनों छोरों पर,
आँखों के दोनों कोरों पर,
एहसास दर्द का होता है,
अब तेरे बिना बिछौनों पर॥

उस रब के सारे बन्दों पर,
इस दुनिया के सब धंधो पर,
आश्चर्य बहुत ही होता है,
अब जीवन के इन छंदों पर॥

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