भारत ही नहीं, होम्योपैथी के खिलाफ इन दिनों दुनिया भर में मुहिम चलाई जा रही है। अभी पिछले दिनों ब्रिटेन में एक अनुसंधान का हवाला देते हुए एलोपैथी लाबी ने होमियोपैथी के सिध्दांतों को अवैज्ञानिक घोषित कर दिया। इस दुष्प्रचार के बावजूद आम आदमी आज भी होमियोपैथी के प्रति विश्वास रखता है।
सवाल है कि देश में जहां 70 फीसदी से ज्यादा लोग लगभग 20 रुपये रोज पर गुजारा करते हों वहां होम्योपैथी जैसी सस्ती चिकित्सा पध्दति एक बढ़िया विकल्प हो सकती है?
हमारे योजनाकारों को इस मुद्दे पर गम्भीरता से विचार करना होगा।
1 टिप्पणियाँ:
भाई साहब ! आपने वाकई बहुत सही मसला उठाया है. आज एलोपैथी वालों ने अपनी महंगी दवाओं का कारोबार बढाने के लिए कम आयुर्वेद और होम्योपैथी जैसी कम खर्चीली चिकित्सा प्रणालियों को बदनाम करने या फिर उन्हें जान-बूझ कर उपेक्षित रखने का एक सुनियोजित दुष्प्रचार का अभियान चला रखा है. ये भी उनके इस अभियान का हिस्सा है , लेकिन देश में कई अच्छे और समझदार लोग भी हैं, जिनकी बदौलत होम्योपैथी की प्रतिष्ठा कायम है और बढती भी जा रही है. जैसे छत्तीसगढ़ के कुछ आदिवासी इलाकों में मलेरिया से बचाव के लिए राज्य सरकार ने एक होम्योपैथिक दवा का वितरण शुरू करवाया है. यह एक अच्छी पहल है. छत्तीसगढ़ सरकार तो ग्रामीण क्षेत्रों के लिए काफी संख्या में होम्योपैथिक और आयुर्वेद चिकित्सा अधिकारियों की भर्ती कर रही है.
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