थोड़े गम जो सह नही पाते हैं,
बस मय में ही डूबे जाते हैं।
पीकर खुद को बादशाह समझ,
मदिरालय में झुकने जाते हैं।
मदिरामय होकर, स्वप्नों में,
सच्चे दुःख दर्द, भुलाये जाते हैं।
मृतप्राय पड़े इस जीवन के,
सत्यासत्य बखाने जाते हैं।
दो चार ग़मों के ही खातिर,
ये मदिरालय जाया करते हैं।
स्वाभिमान गिरवी रख कर,
मय की ठोकर खाया करते हैं।
ये तो अपने कर्मों का ही,
बोझ नहीं ढ़ो पाते हैं।
ये तुच्छ और असहाय जीव,
दार्शनिक बनाये जाते हैं।
हम प्रश्न नहीं उठाते दुःख पर,
जीवन के पहलू होते हैं।
पर इनसे लड़ने की ताकत,
मदिरा से कायर ही लेते हैं।
हम निपट अकेले हैं फिर भी,
साथ न इसका लेते हैं।
हम अपने जख्मों का दर्द,
2 टिप्पणियाँ:
बढिया है। बहुत सुंदर
Thank you Mahendra Ji
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Thanks for your valuable comment.