तेरे लट्ठ पन ने तुझे एक मुकाम दिला दिया |
तुझे सारे ज़माने में इस कदर चमका दिया |
तेरी अक्ल की दाद देता है यह जमाना |
.
इस तरह तू मुझे न देख, मुझे तुझसे लगता है डर |
बात सिर्फ इतनी सी नहीं है, दिल का तो तू है समंदर |
पर तेरी आवाज़ और तेरे अंदाज़ से मुझे लगता है डर |
इज़हार तो करना चाहता हूँ, अपने दिल का मन्ज़र || ३ ||
.
गुरुरे हुस्न, मैं तुझे ताकीद न कर पाया |
देखता रहा तुझे, तस्लीम न कर पाया |
खता माफ़ हो, या सजा दे दो |
पर नज़र न हटे तुझसे, ऐसी जगह दे दो || ४ ||
.
वाह वाह ! ताबे हयात लग रही हो |
इस लिबास में भी, नूर-ए-हयात लग रही हो || ५ ||
बात सिर्फ इतनी सी नहीं है, दिल का तो तू है समंदर |
पर तेरी आवाज़ और तेरे अंदाज़ से मुझे लगता है डर |
इज़हार तो करना चाहता हूँ, अपने दिल का मन्ज़र || ३ ||
.
गुरुरे हुस्न, मैं तुझे ताकीद न कर पाया |
देखता रहा तुझे, तस्लीम न कर पाया |
खता माफ़ हो, या सजा दे दो |
पर नज़र न हटे तुझसे, ऐसी जगह दे दो || ४ ||
.
वाह वाह ! ताबे हयात लग रही हो |
इस लिबास में भी, नूर-ए-हयात लग रही हो || ५ ||
.
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें
Thanks for your valuable comment.