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है साहिल पे बैठा

Written By Pappu Parihar Bundelkhandi on शुक्रवार, 30 सितंबर 2011 | 10:16 am

है साहिल पे बैठा,
लहरों को देखता हूँ,
हवा चलती है,
नमी पानी ले लेता हूँ,

अहसास यह फिजा का,
बहुत देर तक रहता नहीं,
साहिल से जब उठा,
ये भी पास आता नहीं,

अब शुष्क हवा,
चुभती देह में,
झुलसा जाती,
सोख पानी जाती,

कैसे-कैसे दिन बीते,
रात है फिर आती,
सारी-सारी जिन्दगी बीती,
ऋतुएं तो हैं आती-जाती,


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