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माई का जियरा गाइ कहावा

Written By Surendra shukla" Bhramar"5 on सोमवार, 16 मई 2011 | 7:44 am


 माई का जियरा गाइ कहावा
एक लाडला पुत्र जिसे की अशिक्षित माँ बाप दम भर के भविष्य में उन्नति की चरम सीमा पर पहुँचाने का ख्वाब संजोते हैं परिस्थितियों की विडंबना ऐसी की पिता के असमय स्वर्गवासी  होने के बाद माँ महगाई से मार खाकर पढ़ाने से जब  इंकार कर देती है तो बच्चे की वेदना फूट पड़ती है और सपने चकनाचूर- पालि के हमका तू मारू मोरी माई- उसके इस कथन से मन द्रवित हो जाता है
---काश कोई उसके अंतर्मन को पहचान

यह हमारी अवधी भाषा का पुट संजोये है -रचना थोड़ी लम्बी भी है -आशा है आप सब इसे समझने की कोशिश करेंगे – 
हमका बनाऊ की बिगाडू मोरी माई
तुहिन कहू बड़े भाग से पाये
सारी उमरिया का फल इहै आये  
नोनवा  अउ रोटिया खियाई  के जिआए
विधि अब एक आस पूरी कराये
हमारे ललन का अफीसर बनाये
बचपन से कहि कहि जियरा बढ़ाऊ
हमका बनाऊ की बिगाडू मोरी माई  

 सारे गौना में शिक्षा मोहाल बा
करज में डूबे सब खेतवउ बिकात बा
लाला अउ मुनीम खाई खाई के मोटात बा
घर अउ दुवरवा कुडूक होई जात बा  
भैया हमरा टाप कई के देखाए
माई बाप  का नमवा जगाये
अब कैसे ई सब भुलानू मोरी माई
हमका बनाऊ की बिगाडू मोरी माई  

सरकार का कोसू स्कूलवा खोलायेसि                                                                             गऊआँ के लड़िकन का नमवा लिखायेसि
 सारी पढ़इया मुफ्त करवायेसि
पंचये में पहिला नंबर लियाए
तोहरे अशवा का ऊँचा बढ़ाये 
तब काहे हमसे रिसानु मोरी माई 
 हमका बनाऊ की बिगाडू मोरी माई  


खरचउ हरदम हम सीमित चलाये
दिहू जौन हमका उहई हम पाए
चाय पान पिक्चर का कबहूँ न धाये
फीसउ आधी हम माफ़ कराये
अठयें तक हरदम वजीफा लियाए
तब काहे दुश्मन बनाऊ मोरी माई
हमका बनाऊ की बिगाडू मोरी माई  

बाबू के रहत तक ख़ुशी से पढाऊ
कबहूँ न कौनउ  कमवा कराऊ  
जातई सारी जिम्मेदरिया डाऊ
सांझ सवेरे तू हरवा जोताऊ 
तब  काहे जुलुमवा  ढाऊ मोरी माई
हमका बनाऊ की बिगाडू मोरी माई  

सारा काज कई के पढ़इआ   चलाये
सोचि भविषवा  हम फूला न समाये
कबहूँ ना सोचे की ई दिन आये
सारी कमइया वृथा होई जाये
महल सपनवा का ऐसें ढही जाये
नंवई से पढ़इआ   छोड़ाऊ मोरी माई
हम का बनाऊ की बिगाडू मोरी माई ---

सारे अरमानवा पे पानी फिराऊ
चढ़ाई सरगवा पे हमका गिराऊ
गंउआ  से हम का आवारा कहाऊ
खुद अपनेऊ पे सब का हंसाऊ
उठे ला करेजवा में हिलोर मोरी माई
हम का बनाऊ की बिगाडू मोरी माई ---

एसी  अच्छा न कबहूँ पढ़उतू
गाइ गुन गान न छतिया फुलउतू
 चाहे हम से तू हरव्इ जोतउतू
आगे क सपना न हमका देखउतू
बिना विचारे जग का हंसाऊ
जल बिनु मीन हमइ तडफाऊ   
पालि के हमका तू मारू मोरी माई

हम का बनाऊ की बिगाडू मोरी माई ---

फिर पहिले का वचन दोहरावा
तम का भगाइ आलोक जगावा
माइ का जियरा गाइ कहावा
कहें भ्रमर अब जियरा बढ़ावा
मंहगाई का न डरवा देखावा 
राखहु मोर दुलार हो माई
हम का  ल्या फिर से उबार मोरी माई
हम का बनाऊ की बिगाडू मोरी माई ---
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