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भारत में किसी बहु बेटी को इंसाफ़ नहीं मिलता - Anwer Jamal

Written By DR. ANWER JAMAL on रविवार, 15 मई 2011 | 6:59 pm

हक़ीक़त यह है कि जिम्मेदारियों की वजह से मैं कभी जान ही नहीं पाया कि उन्मुक्तता भरी जवानी क्या होती हैं ?
और मौज मस्ती कहते किसे हैं ?
कभी ऐसा वक़्त आया भी तो ज़्यादा देर ठहरा नहीं और किसी ऐसे के पास ठहरेगा भी नहीं , जिसके कोई बहन घर में मौजूद हो और वह उसकी ज़िम्मेदारी महसूस भी करता हो .
मेरी चार बहनों में से एक की हमने शादी की।उसने एक मां की तरह हमारी तमाम ज़रूरतों की  देखभाल की, हर ऐतबार से वह इज़्ज़त के लायक़ है
यह बात मैंने अपने बहनोई को भी उसकी विदाई के वक़्त बताई कि मैं इसे अपनी मां समझता हूं हालांकि मैंने अपनी बहनों को अपनी औलाद की तरह पाला है। इसकी आँख में मैं आंसू नहीं देख सकता.
लेकिन वक़्त भी ऐसा आया की ज़माने भर के आंसू उसकी आँखों में भर दिए.
उसे उसकी ससुराल में सताया गया।
हमने समझाने-बुझाने की पूरी कोशिश की लेकिन लड़के के माता-पिता के मन में लालच और खोट था। कुछ फ़रमाइश का इशारा भी उन्होंने दिया और महर की रक़म पर भी ऐतराज़ जताया.  वे अपने वादे और इरादे से पलट गए। वे चाहते थे कि लड़का पहले की तरह फिर विदेश जाए और कमाए और कमाकर उन्हें भेजता रहे। साल दो साल में लड़का देस में आए और फिर चला जाए। उन्होंने लड़के को विदेश भेज भी दिया और चार माह बाद हमें पता चला कि वह विदेश जा चुका है। इस बीच उसने अपनी पत्नी से किसी भी प्रकार का सलाह मशविरा नहीं किया और न ही अपने विदेश गमन की सूचना दी।
हमने उन्हें बताया कि यह आपकी ग़लत बात है तो उन्होंने अपने वकील के ज़रिए एक क़ानूनी नोटिस भी भेज दिया। जिसमें उन्होंने लड़की पर आरोप लगाया कि वह अपने माता-पिता और भाई के बहकावे में आकर 2 लाख रूपये के ज़ेवर कपड़ा और पति के अस्सी हज़ार रूपये नक़द जो कि उसके पास बतौर अमानत रखवाए गए थे, अपने साथ ले गई है। यह आरोप सरासर झूठे थे और पेशबंदी में लगाए गए थे। हमने सुलह सफ़ाई के लिए सामाजिक प्रक्रिया को अपनाया। काफ़ी कोशिशें कीं लेकिन बेकार गईं।
इसके बाद हमने वकील साहब की सलाह से एक केस उनपर दहेज उत्पीड़न की धाराओं में थाने में दर्ज कराया। इसे दर्ज कराने में हमें 15 दिन लग गए। कई बार एस.एस.पी. साहब से मिले। हमने कोई झूठी मैडिकल रिपोर्ट नहीं बनवाई। उसके बाद एक केस ख़र्चे के लिए डाला और एक केस दहेज वापसी के लिए और एक केस ‘घरेलू हिंसा महिला अधिनियम‘ के तहत भी डाला।
वकील साहब जो कहते रहे हम करते रहे।
आज लगभग चार साल होने जा रहे हैं। लड़की को न तो कोई ख़र्चा मिला है और न ही दहेज का सामान ही वापस मिला है।
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