प्रदूषण का मारा.....
( बृज भाषा )
हे बगुला ! तू कारो क्यों है ,
सूखौ ढीलौ ढालौ क्यों है ?
कितै गईं वे उजरी पंखियां ,
चौंच नुकीली तीखी अँखियाँ ||
दर्द तिहारौ दयौ , भला अब -
पूछत हौ दुःख भरी कहानी |
नदिया ताल नहरि पोखरि कौ,
तुमनै कियौ प्रदूषित पानी ||
मछरी कबहुं कबहुं मिलि जावे ,
कहाँ प्रदूसन मैं पलि पावै |
कारन है जानौ पहचानौ,
भूखौ रहिबौ, दूषित खानौ ||
ताल- तलैया पाटि दये हैं ,
दूर दूर उडि कै जाऊं मैं |
धुंआ डीज़ल मिली हवा में ,
पांखें कारी करि लाऊँ मैं ||
खानौ पीनौ सब जहरीलौ,
क्यों न बदन हो सूखौ ढीलौ |
मंद भईं अँखियाँ चमकीली ,
कहा करै अब चौंच नुकीली ||
4 टिप्पणियाँ:
पर्यावरण प्रदूषण पर मार्मिक कविता..
फिर भी सुन्दर....!!
sachet karti rachna
डॉ श्याम जी बहुत खूब प्रदुषण का वर्णन बगुला भगत के मुख से -अच्छा सन्देश -बधाई हो -काश बगुला भगत को लोग फिर से श्वेत बना दें -
नदिया ताल नहरि पोखरि कौ,
तुमनै कियौ प्रदूषित पानी ||
सुंदर प्रस्तुती ....
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