नियम व निति निर्देशिका::: AIBA के सदस्यगण से यह आशा की जाती है कि वह निम्नलिखित नियमों का अक्षरशः पालन करेंगे और यह अनुपालित न करने पर उन्हें तत्काल प्रभाव से AIBA की सदस्यता से निलम्बित किया जा सकता है: *कोई भी सदस्य अपनी पोस्ट/लेख को केवल ड्राफ्ट में ही सेव करेगा/करेगी. *पोस्ट/लेख को किसी भी दशा में पब्लिश नहीं करेगा/करेगी. इन दो नियमों का पालन करना सभी सदस्यों के लिए अनिवार्य है. द्वारा:- ADMIN, AIBA

Home » » कितने रूप धरे तू नारी

कितने रूप धरे तू नारी

Written By Surendra shukla" Bhramar"5 on शुक्रवार, 20 मई 2011 | 9:33 pm


बड़े चैन से सोया था मै
मंदिर सीढ़ी पड़ा कहीं
क्या क्या सपने -खोया था मै
ले भागी स्टेशन जब !!
सीटी एक जोर की सुन के
चीख उठा मै कान फटा
एक भिखारन की गोदी में
11_11_53_3_2_300x238
(फोटो साभार गूगल /नेट से लिया गया)
सुन्दर-सजा हुआ लिपटा
देख रहा अद्भुत एक नारी !!
—————————-
बड़ी भीड़ में घूर रही कुछ
तेज निगाहें देख रहा
अरे चोरनी किसका बच्चा
ले आई यों खिला रही
शर्म नहीं ये धंधा करते
खीसें खड़ी निपोर रही
देख रहा शरमाती नारी !!
————————–
फटी हुयी साडी लिपटा के
मुझे लिए डरती भागी वो
खेत बाग़ डेरे में पल के
खच्चर -मै -चढ़ घूम रहा
सूखा रुखा मुर्गा चूहा
पाया जो आनंद लिया !
कान छिदाये माला पहने
नाग लिए मै घूम रहा !
खेल दिखाता करतब कितने
“बहना” भी एक छोटी पायी
भरे कटोरा ले आते हम
ख़ुशी बड़ी अपनी ये माई !
देख रहा क्या लोलुप नारी !!
—————————
उस माई का पता नहीं था
कहीं अभागन जीती जो
या लज्जा से मरी कहीं वो
साँसे गिनती होगी जो
सोच रहा वो कैसी नारी !!!
————————–
अपनी माँ को माँ कहने का
सपना मन में कौंध रहा
उस मंदिर में बना भिखारी
रोज पहुँच मै खड़ा हुआ
जिस सीढ़ी से मुझे उठा के
इस माई ने प्यार दिया
सोच रहा था ये भी नारी !!!
————————–
माई माई मै घिघियाता
कुछ माई ने देखा मुझको
सिक्का एक कटोरे डाले
नजरों जाने क्या भ्रम पाले
कोई प्यार से कोई घृणा से
मुह बिचका जाती कुछ नारी
कितने रूप धरे तू नारी !!!
—————————–
नट-नटिनी के उस कुनबे में
मुझे घूरती सभी निगाहें
कृष्ण पाख का चंदा जैसे
उस माई का “लाल ये” दमके
कोई हरामी या अनाथ ये
बोल -बोल छलनी दिल करते
देख रहा अपमानित चेहरा -तेरा -नारी !!
———————————-
बच्चों की कुछ देख किताबें
हाथ में बस्ता टिफिन टांगते
कितना खुश मै हँस भी पड़ता -
मन में !! -दूर मगर मै रहता
छूत न लग जाये बच्चों को
प्यारे कितने फूल सरीखे !
गंदे ना हो जाएँ छू के !
हँस पड़ता मै -रो भी पड़ता
हाथ की अपनी देख लकीरें
देख रहा किस्मत की रेखा !!!!
———————————-
तभी एक “माई” ने आ के
पूड़ी और अचार दिया
गाल हमारा छू करके कुछ
“चुप” के से कुछ प्यार दिया
गोदी मुझे लगा कर के वो
न्योछावर कर वार दिया !
कुछ गड्डी नोटों की दे के
इस माई से मुझे लिया !!
भौंचक्का सा बना खिलौना
“उस माई ” के संग चला
देख चुका मै कितनी नारी !!!
कितने रूप धरे तू नारी !!
———————————
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
१७.५.२०११ जल पी. बी .१०.४१ मध्याह्न
Share this article :

0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें

Thanks for your valuable comment.