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सीढियां चढ़ा - दो

Written By Surendra shukla" Bhramar"5 on बुधवार, 4 मई 2011 | 7:16 pm


सीढियां चढ़ा - दो
उसी पुराने
टूटहे  मंदिर में


बाहर
सामने खड़ा


मै
सीढियां चढ़ा
-दो -
रोता-कोसता
भगवान को
मोज़े-फटे
जूते -घिसे
पक्का -नहीं
दुनिया हँसे
जिन्दगी दिया ??
जीते जी
या ले लिया ??
तभी वह
बैसाखियों के सहारे
सीढियां चढ़ा
अन्दर बढ़ा
दंडवत पड़ा 
शुक्र है प्रभु !
जीवन दिया
मानव तन 
उपकारी मन 
बुद्धि दे -शक्ति दे
सर्व व्यापी 
रचने को कर दे
बस यही वर दे 
हँसता -गया 
रोता -गया










हँसता हुआ


मै …..
उलटे पाँव
लौट पड़ा



सुरेन्द्र कुमार शुक्ल
४.५.२०११
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1 टिप्पणियाँ:

prerna argal ने कहा…

बहुत सुंदर रचना /बधाई आपको/हँसता गया रोता गया /बहुत सुंदर शब्दों का चयन /

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