तृष्णा में खोए हैं सब ,
न किसी के मन को शांति है .जितना पा लेता है जो ,
उतना ही खो देता है वो .
पाता है वो भौतिकता को ,
खो देता है नैतिकता को .
सुख खोज रहा धन - दौलत में ,
ये उसके दिल की भ्रान्ति है .
तृष्णा में खोए ........................................................
"कायत" , मानवता की सोचें ,
न धन के पीछे दौड़ें सब .
प्रेम -मिलाप का सबक सीखें ,
ईर्ष्या-द्वेष को छोड़ें अब .
पहले आजादी तन की पाई ,
ये मन की आजादी की क्रांति है. तृष्णा में खोए हैं सब , न किसी के मन को शांति है.
न किसी के मन को शांति है.
1 टिप्पणियाँ:
जितना पा लेता है जो ,
उतना ही खो देता है वो .
पाता है वो भौतिकता को ,
खो देता है नैतिकता को .
सुख खोज रहा धन - दौलत में ,
ये उसके दिल की भ्रान्ति है .
तृष्णा में खोए ......
और इंसान शायद ही ये बात समझ सके..
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