लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की आज़ादी की क़ीमत अगर महज़ 5 रूपये अदा करनी पड़ रही है तो इसमें क्या बुरा है ?
जनता को लोकतंत्र चाहिए और लोकतंत्र को जनता के चुने हुए प्रतिनिधि चाहिएं। चुनाव के लिए धन चाहिए और धन पाने के लिए पूंजीपति चाहिएं। पूंजीपति को ‘मनी बैक गारंटी‘ चाहिए, जो कि चुनाव में खड़े होने वाले सभी उम्मीदवारों को देनी ही पड़ती है।
देश-विदेश सब जगह यही हाल है। जब अंतर्राष्ट्रीय कारणों से महंगाई बढ़ती है तो उसकी आड़ में एक की जगह पांच रूपये महंगाई बढ़ा दी जाती है और अगर जनता कुछ बोलती है तो कुछ कमी कर दी जाती है और यूं जनता लोकतंत्र की क़ीमत चुकाती है।
6 टिप्पणियाँ:
bilkul sahi batyaa aapne.parantu mahangaai itani badhrahi hai.isi liye brhastaachaar bhi badh raha hai sabki moj hai sirf garib mar raha hai.achche vishay per likha aapne.badhaai
@ Prerna ji ! aapne saraaha to hamara likhna saphal hua.
Shukriya.
बढ़िया लिखा है
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
bhut sahi likha hai
जनता भेड़ की तरह भोली. नेताओं के चेहरे चुनावों में कैसे और चुनावों के बाद कैसे. बहुत ही भोले - भेड़िए की तरह.
बात सोलह आने सच है, लेकिन जनता तो पेट की भूख से ही नहीं उबर पाती है, उसे लोकतंत्र कि परिभाषा कहाँ से आएगी? वह इन मक्कार लोगों की चुनावी दिलासाओं में वर्षों सेठगती चली आ रही है. कोई नागनाथ कोई साँपनाथ . करना सभी को वही है.
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