नियम व निति निर्देशिका::: AIBA के सदस्यगण से यह आशा की जाती है कि वह निम्नलिखित नियमों का अक्षरशः पालन करेंगे और यह अनुपालित न करने पर उन्हें तत्काल प्रभाव से AIBA की सदस्यता से निलम्बित किया जा सकता है: *कोई भी सदस्य अपनी पोस्ट/लेख को केवल ड्राफ्ट में ही सेव करेगा/करेगी. *पोस्ट/लेख को किसी भी दशा में पब्लिश नहीं करेगा/करेगी. इन दो नियमों का पालन करना सभी सदस्यों के लिए अनिवार्य है. द्वारा:- ADMIN, AIBA

Home » , , , , , , » शूर्पणखा काव्य उपन्यास--अन्तिम सर्ग ९..परिणति..भाग एक....

शूर्पणखा काव्य उपन्यास--अन्तिम सर्ग ९..परिणति..भाग एक....

Written By shyam gupta on रविवार, 1 मई 2011 | 1:25 pm


शूर्पणखा काव्य उपन्यास-- नारी विमर्श पर अगीत विधा खंड काव्य .....रचयिता -डा श्याम गुप्त

         
        पिछली पोस्ट - अष्ठम सर्ग..संकेत... --में शूर्पणखा खर-दूषण से अपनी व्यथा कहती है और वे  तुरंत अपराधी को दंड देने के लिए से सहित चल पड़ते हैं , और राम के हाथों मारे जाते हैं, शूर्पणखा भाग कर रावण को घटना का समाचार देने लन्का को प्रस्थान करती है । प्रस्तुत है इस खन्ड काव्य का अन्तिम सर्ग.९ ..परिणति...कुल छंद ३६ जो दो भागों में प्रस्तुत किया जायगा । प्रस्तुत है प्रथम भाग...छंद १ से १८ तक....
१-
रामानुज चले गए वन को,
 ले आने को कंद मूल फल |
अवसर उचित देख रघुनंदन ,
हंसकर  बोले, -  हे वैदेही !
तुम व्रतशील , सत्य अनुशीला,
अनुगामिनी हो, प्रिय राम की ||
२-
सीता ने विस्मय में भरकर,
पूछा, ये क्या नाथ कह रहे !
क्या अपराध हुआ है कोई,
अथवा मेरे व्रत साधन में;
क्या कोई व्यवधान हुआ है ,
क्षमा करें यदि एसा है तो ||
३-
रघुवर बोले, हे प्रिय सीते !
वन में कुछ लीला करनी है |
साधारण नर-भाँति मुझे, अब-
वन में विचरण करना होगा |
जिस कारण वन वास लिया है,
शीघ्र पूर्ण करना है उसको ||
४-
अपने विछोह के पल का भी,
अब समय आगया है सीता |
तुम पावक में विश्राम करो,
मैं राक्षस-कुल का नाश करूँ |
विवरण सारा विस्तार सहित,
सीता को सब कुछ समझाया ||
५-
अपनी प्रतिकृति को प्रकट किया,
वैसी ही  सुन्दर,  व्रत शीला  ,
औ रूप गुणों की अनुकृति थी |
आज्ञा देकर, तुम यहीं रहो,
जानकी   समाई   पावक में ;
पहुँची अग्निदेव ऋषि आश्रम ||
६-
कोई नहीं जान पाया यह,
राम-जानकी का लीलाक्रम |
लीला , ब्रह्म और माया की ,
नर कब भला समझ पाता है |
प्रभु लीला नर मगन रहे तो,
भव-सागर से वह तर जाए ||
७-
प्रभु की इस लीला माया को,
परम भक्त भी समझ न पाता 
ज्ञान भाव की आस रहे तो,
भक्ति भाव कब मिल पाता है |
यह सारी लीला राघव की,
रामानुज भी जान न पाए ||
८-
क्रुद्ध सिंहिनी भाँति गरज़ती,
नागिन सी फुफकार मारती |
लेती  साँसें   पवन बेग सी ,
पहुँची  सीधी   राजभवन में |
जीवित   हुईं    पुरानी यादें,
मन का द्वंद्व उभर आया था ||
९-
भूत काल की सब घटनाएँ ,
किसी बुरे से स्वप्न की तरह ;
शूर्पणखा के मन:पटल पर,
लगीं उभरने बार बार फिर |
क्रोधावेश भाव में भरकर,
भरी सभा में लगी विलपने ||
१०-
मदपान किये तुम दशकंधर,
दिन रात मस्त तुम रहते हो |
आलस्य भरे सोते रहते,
अथवा विलास रत  रहो सदा |
सब राज-काज को भूल गए,
हो मस्त अहं में अपने ही ||
११-
है शत्रु  खडा दरवाजे पर,
तुम हो विलास रत झूम रहे |
ताज राज्य-कर्म, चातुर्य नीति,
हो अहंकार मद फूल रहे |
गुप्तचरी व्यवथा ध्वस्त हुई ,
तुमको कुछ भी है पता नहीं ||
१२-
उचित नीति बिन राज्य नष्ट हो,
धन जो धर्म कार्य नहीं आये |
चाहे जो  सत्कर्म करे  नर,
ईश्वर प्रेम बिना नहिं भाये |
बिना विवेक नाश हो विद्या,
नष्ट कर्म फल, श्रम न करे जो ||
१३-
यती संग से विभ्रम मति हो,
नष्ट कुमंत्र करे राजा को |
अति सम्मान नाश ज्ञानी का,
पिए-पिलाए लज्जा जाए |
प्रीति- प्रणय बिन, गुणी अहं से,,
तुरत नष्ट हों नीति यही है ||
१४-
दुश्मन को, पद दलित धूलि को,
अग्नि, पाप, ईश्वर व कर्म को ;
कभी न छोटा करके  समझें |
इनके बल गुण कर्म भाव का,
नहीं कभी भी अहंकार वश,
करें  उपेक्षा,    असावधानी || 
१५-
तेरे  जैसे   वीर,  प्रतापी,
विश्वजयी, लंका के अधिपति;
के जीते मेरी यह गति हो |
कोई जिए मरे तुमको क्या ,
गिर कर सभा मध्य, शूर्पणखा;
करने लगी विलाप विविध विधि ||
१६-
स्तब्ध सभासदों ने उठकर,
आसीन किया सिंहासन पर |
क्रोधित हो बोला दशकंधर,
किसने श्रुति-नासा हीन किया |
किस देव,  दनुज  या मानव ने,
दे दिया मृत्यु को आमंत्रण ||
१७-
वे सिंह सामान पुरुष हैं दो,
नृप दशरथ के हैं वीर पुत्र;
जो अवध पुरी से आये हैं |
उनका बल पाकर हे भ्राता ! 
ऋषि मुनि गण,बनचर,वन वासी ,
वन में रहते हैं अभय हुए ||
१८-
अति सुन्दर वालक लगते हैं ,
पर परम वीर, धन्वी दोनों;
प्रबल प्रतापी काल रूप हैं |
नाम 'राम', लघुभ्राता लक्ष्मण,
रति सामान सी सुन्दर नारी;
सीता नाम, साथ है उनके ||   -----क्रमश: भाग दो.......

 
 




   


 
 
 
Share this article :

0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें

Thanks for your valuable comment.